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________________ मागधी ( १ ) भागधी की प्रकृति शौरसेनी मानी गयी है । साधारण प्राकृत भी मांगी का मूल मानी जा सकती है । ( २ ) मागधी में अकारान्त पुल्लिङ्ग शब्दों के प्रथमा के एकवचन में ओकारान्त रूप न होकर एकारान्त होते हैं । यथा < एशेमेशेष मेषः एशे पुलिशे । एष पुरुषः; करोमि भन्ते करोमि भदन्त । ( ३ ) मागधी में रेफ के स्थान पर लकार और इन्स्य सकार के स्थान पर तालव्य शकार होता है । यथा र के स्थान पर ल और विसर्ग को एत्व नले नरः - कले ८ करः विआले < विचार: 23 हं हंसः - दन्त्य के स्थान पर तालव्य श और विसर्ग को एत्व शालशे सारसः - आद्यन्त दन्त्य स के स्थान पर ताब्व्य श और रेफ को ल शुदं श्रुतम् - एदं – दस्य स को तालव्य श और शौरसेनी के समान - त को द । - "" 99 शोभणं सोहणं शोभनम् - "3 ( ४ ) मागधी में यदि सकार और षकार - अलग-अलग संयुक्त हों तो उनके स्थान में स होता है। ग्रीष्म शब्द में उक्त आदेश नहीं होता । यथा - पक्खलदि हस्ती प्रस्खलति हस्ती - यहां स् और त संयुक्त हैं, अतः संयुक्त स के स्थान पर तालव्य श नहीं हुआ । बृहस्पदी 4 बृहस्पतिः — संयुक्त स को तालव्य श नहीं हुआ और दस्य स ज्यों का त्यों बना रहा। १. प्रत एत्सौ पुंसि मागध्याम् ८।४।२८७ । २. र - सोल - शौ ८।४।२८८ । ३. स - षोः संयोगे सोऽग्रीष्मे ८।४।२८ |
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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