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________________ ३६४ अभिनव प्राकृत-व्याकरण सुविदिदो< सुविदित:-त के स्थान पर द (प्र० सा० गा० १४) भणिदो भणित: - 1 ----" पदिमहिदो पतिमहित: -, (प्र० सा० गा० १६) भूदो भूतः - हवदि भवतिपरिवजि दो< परिवर्जितः-, (प्र० सा० गा० १७) ठिदि< स्थिति:--- , , (प्र० सा० गा० १७) उप्पादोर उत्पादः - , (प्र० सा० गा० १८) सब्भूदो< सद्भूतः - " " " जादो< जातः - (प्र० सा० गा० १९) अदिदिओ अतीन्द्रियःवितीद ८ व्यतीतः - ( धवला प्र० ख०) पयासदि प्रकाशयति-,, , (स्वा का० गा० २९४) मदिणाणं < मतिज्ञान-, , स्वा० का० गा० २५८) ) जैन शौरसेनी में त के स्थान पर त और य भी पाये जाते हैं। यथातिहुवणतिलयं र त्रिभुवनतिलक-त के स्थान पर त ( स्वा० का० गा० १) जलतरंगचपला < जलतरङ्ग चपला-(स्वा० का० गा० १२ ) विसहते रविसहते-(स्वा० का० गा० ३६) तिव्वतिसाए < तीव्रतृषया–त के स्थान पर त ( स्वा० का० गा० ४३ ) संपत्ती< सम्प्राप्ति: - , (स्वा० का० गा० ४५१) अधिकतेजो अधिकतेजाः - (प्र० सा० गा० १९) अक्खातीदो< अक्षातीत: -, , (प्र० सा० गा० २९) संति < सन्ति- (प्र. सा० गा० ३१ ) मुत्तममुत्तं< मूर्तममूर्तम्-,, , (प्र० सा० गा० ४१) मुत्तिगदो मूर्तिगत:- , , (प्र० सा० गा० ५५) त = य-रहियं दरहितं- त के स्थान पर य (प्र० सा० गा० ५९) सव्वगयंद सर्वगतम्- , (प्र० सा० गा० २३, ३१) भणिया- भणिता- , (प्र० सा० गा० २६) संजाया< संजाता- (प्र० सा. गा० ३८) गयं गतम्- , (प्र० सा० गा० ४१) महत्वयं महाव्रतम् , (स्वा० का० गा० ९५)
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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