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________________ " ३८४ अभिनव प्राकृत-व्याकरण _नाधो, नाहो< नाथः---थ के स्थान पर विकल्प से ध और विकल्पाभाव मेंथ को ह हुआ है। राजपधो, राजपहो< राजपथ:-- , (६) शौरसेनी में इन्नन्त शब्दों से आमन्त्रण-सम्बोधन की प्रथमा विभक्ति के एकवचन में विकल्प से इन् के न का आकार होता है । यथा भो कञ्चुइआ< भो कबुकिन् । सुहिआ< सुखिन् । अन्यन्त्र----भो तवस्सि < भो तपस्विन् भो मणस्सि< भो मनस्विन् (७) शौरसेनी में नकरान्त शब्दों में सम्बोधन एकवचन में विकल्प से न के स्थान पर अनुस्वार होता है । यथा भो रायं< भो राजन्–ज का लोप, अ स्वर शेष और अ को य, न् का विकल्प से अनुस्वार । मो विअयवम्म दभो विजयवर्मन्-जलोप, अ स्वर शेष और न को अनुस्वार । (८) शौरसेनी में भवत् और भगवत् शब्दों में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नकार के स्थान पर अनुस्वार हो जाता है। यथा एदु भवं, समणे भगवं महावीरे। (९) शौरसेनी में ये के स्थान पर विकल्प से प्य आदेश होता है और विकल्पाभाव में ज आदेश होता है। यथा अय्यउत्तो, अजउत्तोर आर्यपुत्र:-र्य के स्थान पर प्य तथा विकल्पाभाव में ज और पकार का लोप, नको त्त। कय्यं, कजं < कार्यम्-र्य को विकल्प से य्य, विकल्पाभाव में ज । पय्याकुलो, पजाकुलोद पाकुल:-, सुय्यो, सुजो सूयःकजपरवसो< कार्यपरवश:-., (१०) शौरसेनी में इह और ह्यू आदेश के हकार के स्थान में विकल्प से ध होता है। यथा इधर इह-द के स्थान पर ध हुआ है। होध होह-भवथ-, परित्तायध< परित्तायह-परित्रायध्वे—त्र को त और ह को ध । १. मा आमन्त्र्ये सौ वेनो नः ८।४।२६३ । २. मो वा ८।४।२६४ । ३. भवद्भगवतोः ८।२।२६५ । ४. न वा यो व्यः ८।४।२६६ । ५. इह-ह्योहस्य ८।४।२६८।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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