SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण ३७५ लिह लुट, लुट्ट, लूड लिख , लिह ਢਾਟ नि+Vली, तुड लुक Vलुभ लिखना; चाटना लूटना लुकना, छिपना; टूटेना लुढ़कना, लेटना लोभ करना वध करना, मार डालना पोछना लेना कपास निकालना लूषय मुज ला वग्ग वज्ज वज्जर वट्ट वड्ढ वृध वड्ढव वण्ण Vवर्णय वम Vवञ्च ठगना वि + अञ्ज व्यक्त करना Vवन्दू प्रणाम करना काङ्क्ष चाहना, अभिलाषा करना Vवल्ग कूदना, जाना, वर्ग करना Vत्रस् , Vवदू डरना; वजना कथय कहना, बोलना वृत् परोसना, व्यवहार करना, वरतना बढ़ना Vवर्धय बढाना, वृद्धि करना वर्णन करना Vवम् उलटी करना, वमन करना Vवच , Vवदू बोलना, कहना, गमन करना Vवृ सगाई करना, सम्बन्ध करना Vवल लोटाना, वापस करना, प्रहण करना Vवह , Vवध् , व्यथ् पहुँचानाः मारना; पीड़ा करना Vवा, म्ल, व्ये गति करना,चलना; सूखना, बुनना Vवादय् बजाना Vवालय मोड़ना, वापस लौटाना व्या+ काम में लगना व्या +पादय --- - मार डालना, विनाश करना पशु-पक्षियों का बोलना -वाहय वहन करना, चलाना वय १८ वा वाय वाल वावर वावाअ वास वाह
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy