SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ दे०, आअड्ड आअर आअव्व आइ आइग्घ आइस आईव आउंच आउच्छ आउट्ट आउड, आउड्ड आउस अभिनव प्राकृत-व्याकरण. - व्या + VY परवश होकर चलना; काम में लगना आ + VE आदर करना Vवेप कांपना आ+दा ग्रहण करना, लेना आ+ Vघा सूंघना आ+दिश् आदेश करना, आज्ञा देना आ + Vढीप चमकना आ + कुञ्चय संकुचित करना, समेटना आ + प्रच्छ आज्ञा लेना, अनुज्ञा लेना आ + Vवृत् , आ +/कुट व्यवस्था करना, छेदन करना, हिसा करना आ + जोडय् , +कुट , लिख , मस्ज् जोड़ना; कूटना; लिखना; डूबना आ + Vवस् , + क्रुश , रहना; शाप देना; स्पर्श करना; +मृश् , + Vजुष् सेवन करना आ + पूरय भरना, पूर्ति करना प्रा+खोटय् प्रवेश करना, घुसेड़ना आ + युध् लड़ना आ + क्रन्दू रोना, चिल्लाना आ + कम्प कापना आ + आकुञ्चय संकोच करना आ + कलय जानना, लगाना आ + कारय् बुलाना, आह्वान करना आ + Vष घर्षण करना आ+Vघस् घिसना आ + घूर्ण डोलना, हिलना आ + Vघोषय घोषणा करना आ + दह चारों ओर जलाना मिश्रण करना, मिलाना आ + Vटोपय् आडंबर करना आ+रभ आरम्भ करना आ+VE आदर करना, मानना आऊर आओड आओध आकंद आकंप आकुंच आगल आगार आघंस आघस आघुम्म आघोस आडह आडुआल आडोव आढव आढा
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy