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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण ३३६ अभिदव अभिनिक्खम अभिमंत अभिमन्न अभिरम अभि + अभि निर + क्रम् अभि + मन्त्रय अभि + Vमन् अभि + रम् अभिहण अय अर्ह अभिस्य अभिरुच अभिरुह अभि + रुह अभिलस अभि + Vलष अभिवंद अभि + वन्द अभिवड्ढ अभिवृध अभिसिंच अभि + सिच अभि + हन् अम अम् अय अयंछ घृष् अरिह अरोअ उत् + लस अलंकर अलं +1क अल्लिअ उप+ सप् अल्लिव अर्पय अल्ली, अल्लीअ आ + Vली अव अवअक्ख,अवअझ दश अवअच्छ अबउज्झ अप + उज्झ अवकंख अव + Nकाङ्क्ष अवकर अव + V अवकस अव + कष अवक्कम अप+ क्रम् अवखेर अवगाह अव+गाह - - अवगुण अव+गुणय पीड़ा करना, दुःख उपजाना दीक्षा लेना मन्त्रित करना अभिमान करना क्रोड़ा करना, संभोग करना, प्रीति करना पसन्द करना, रुचना रोकना, ऊपर चढ़ना चाहना, वांछना नमस्कार करना, वन्दना करना बढ़ना, बड़ा होना, उन्नत होना अभिषेक करना मारना, हिंसा करना जाना, आवाज करना गमन करना, जाना खींचना योग्य होना, पूजा करना उल्लास करना, विकसित होना भूषित करना समीप में जाना अर्पण करना आना, प्रवेश करना, आश्रय करना रक्षण करना देखना आनन्द पाना, प्रसन्न होना परित्याग करना चाहना, देखना अहित करना त्याग करना पीछे हटना, बाहर निकलना खिन्न करना, तिरस्कार करना अवगाहन करना खोलना, उद्घाटन करना अव हादू -
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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