SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२ म० पु० उ० पु० प्र०पु० म० पु० उ० पु० अभिनव प्राकृत - व्याकरण सुस्सूसि हिसि, सुस्सूसिह से सुस्सूसिस्सं, सुस्सू सिस्सामि सुसूसिहामि सुस्सूसिद्दित्था, सुस्सू सिहिह सुस्सूसिस्सामो, सुस्सूसिहामो सुसूसिहिमो, सुस्सू सिस्सामु विधि एवं आज्ञार्थ एकवचन सुस्सूस उ सुस्सूसहि, सुस्सूससु सुस्सूसमु, सुस्सूसामु सुस्सू सिमु बहुवचन सुस्सूसन्तु सुस्सूलह सुस्सूसमो, सुस्सूयामो, सुस्सूसिमो क्रियातिपत्ति सभी वचन और सभी पुरुषों में सुस्सूसेज, सुस्सूसेजा, सुस्सूसन्तो, सुसुमागो सन्नन्त -- इच्छार्थक धातुओं के कर्मणि और भावि रूप लिच्छ<लभू - लिच्छीअइ (लिप्स्यते) झुण गुप्-झुणीअइ (जुगुप्स्यते) बुहुक्ख < भुज् — बुहुक्खी अइ ( बुभुक्ष्यते ) यङन्त, यङ्लुगन्त और नामधातु ( ३७ ) व्यञ्जन से आरम्भ होनेवाली किसी भी एकाच् धातु के अनन्तर क्रिया को बार-बार करने अथवा क्रिया को खूब करने का बोध कराने के लिए संस्कृत में प्रत्यय लगाया जाता है । पर प्राकृत में यङन्त क्रियाएँ वर्णविकार द्वारा ही निष्पन्न होती हैं। यथा वीआइ, पेवीए पेपीयते लालप्पइ, लालप्पए लालप्यते वरीवच्चइ, वरीवच्चए द वरीवृत्यते सासक्कइ, सासक्कए दशाशक्यते जाजाअइ, जाजाअए जाजायते ( ३८ ) संस्कृत धातुओं में यङ् प्रत्यय का लोप हो जाने पर भी अतिशय या बार-बार अर्थ में क्रिया का प्रयोग होता है। प्राकृत में यह यङ्लुबंत या यङ्लुगन्त भी वर्णविकार द्वारा अवगत किया जाता है । यथा चकमइचङ्क्रमति चंक्रमणं चक्रमणम्
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy