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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण शनै: + इअ = सणिअं ( शनै: ), सणिअमवगूढो । (२०) मनाक् शब्द से स्वार्थिक डयम् और डिअम् प्रत्यय विकल्प से होते । यथा २६० यथा मनाक् (मण) +अय = मणयं नाकू (मण) + इय = मणियं, मणा ( २२ ) दीर्घ शब्द से स्वार्थिक से प्रत्यय विकल्प से होता है रे । यथादीर्घ ( दीह) + र = दीहरं, दीहं (दीर्घम् ) २३) विद्युत्, पत्र, पीत और अन्ध शब्द से स्वार्थ में ल प्रत्यय विकल्प से होता है। यथा विद्युत् (विज्जु) + ल विज्जुला, विज्जू (विद्युत् ) पत्र (पत्त ) + ल = पत्तलं, पत्तं (पत्रम् ) पीत ( पीअ) + ल= पीअलं, पीवलं, पीअं ( पीतम् ) अन्ध + ल = अंधलो, अंधो ( अन्ध: ) ( २४ ) नव और एक शब्द को स्वार्थ में विकल्प से ल्लो प्रत्यय होता है" । यथा } मनाक् २ ( २१ ) मिश्र शब्द से स्वार्थिक डालिअ प्रत्यय विकल्प से होता है । यथामिश्र ( मीस ) + आलिअ = मीसालिअं, मीसं ( मिश्रम् ) नव + ल - नवल्लो, नवो ( नवक: ) एक + ल = एकल्लो, एक्को ( एकक : ) अवरि + ल्ल = अवरिल्लो (२५) पथ शब्द से होने वाले ण के स्थान में इकटू प्रत्यय होता यथा १. मनाको न वा डयं च ८।२।१६६ ३. रो दीर्घात् ८।२।१७१ ५. ल्लो नवैकाद्वा८।२।१६५ ७. यस्यात्मनो यः ८।२।१५३ पह + इ = पहिओ (पान्थ : ) ( २६ ) आत्म शब्द से होनेवाले ईय के स्थान में जय आदेश होता है । अप्प + णय = अप्पण ( आत्मीयम् ) ६ २. मिश्राड्डालिनः ८।२।१७० ४. विद्युत्पत्र - पीतान्धाल्लः ८|२| १ | १७३ ६. पथो णस्येकट् ८।२।१५२ 1
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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