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________________ समासविचार (१) "समसनं समासः”-संक्षेप को समास कहते हैं अर्थात् दो या अधिक शब्दों को इस प्रकार साथ रखना, जिससे उनके आकार में कमी आ जाय और अर्थ भी प्रकट हो जाय। तात्पर्य यह है कि परस्पर सम्बद्ध अर्थवाले शब्दों का एक रूप में मिलना समास है। समास से सिद्ध पद-सामासिक या समस्तपद कहलाते हैं। समस्तपद के प्रत्येक पद को विभक्तियों के साथ अलग-अलग करने को विग्रह कहते हैं। समास मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं--(१) अव्ययीभाव, ( २ ) तत्पुरुष, ( ३ ) बहुव्रीहि और ( ४ ) द्वन्द्व । अव्ययीभाव में पहले पद के अर्थ की, तत्पुरुष में दूसरे पद के अर्थ की, बहुव्रीहि में अन्य पद के अर्थ की तथा द्वन्द्व में सभी पदों के अर्थो की प्रधानता होती है। तत्पुरुष समास दो प्रकार का होता है--( १ ) समानाधिकरण तत्पुरुष और ( २ ) व्यधिकरण तत्पुरुष । समानाधिकरण तत्पुरुष का ही दूसरा नाम कर्मधारय समास है । द्विगु समास कर्मधारय का ही भेद है। एकशेष समास भी स्वतन्त्र नहीं है, यह द्वन्द्व का ही एक उपभेद है। कहा भी है दंदे य बहुव्वीही कम्मधारय दिगुयए चेव । तप्पुरिसे अव्वईभावे एक्कसेसे य सत्तमे ॥ (१) अव्ययीभाव (अव्वईभाव) ( १ ) अव्ययीभाव समास में पहला पद बहुधा कोई अव्यय होता है और यही प्रधान होता है। अव्ययीभाव समास का समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय होता है। (३) विभक्ति आदि अर्थों में अव्यय का प्रयोग होने पर अव्ययीभाव समास होता है। (१) विभक्ति अर्थ में हरिम्मि इइ–अहिहरि, अप्पंसि अन्तो अज्झप्पं । ( २ ) समीप अर्थ में-गुरुणो समीवं-उवगुरु; सिद्धगिरिणो समीवं उवसिद्धगिरिं । ( ३ ) पश्चात् अर्थ में जिणस्स पच्छा-अणुजिणं; भोयणस्स पच्छा अणुभोयणं।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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