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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण २४१ (२) जिसके कारण डर मालूम हो अथवा जिसके डर के कारण रक्षा करनी हो, उस कारण को पञ्चमी विभक्ति होती है। यथा-चोरओ बीहइ, सप्पओ भयं; रामो कलहत्तो बीहइ। (३) प्राकृत में 'भी' धातु के योग में पञ्चमी के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति भी पायी जाती है। यथा-दुट्ठाण को न बीहइ-दुष्टेभ्यः को न बिभेति-दुष्टों से कौन नहीं डरता है। (४) पञ्चमी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति भी देखी जाती है। यथा-चोरस्स बीहइ-चौराद्विभेति-चोर से डरता है । (५) पञ्चमी के स्थान में कहीं-कहीं तृतीया और सप्तमी विभक्ति भी पायी जाती हैं। यथा-चोरेण बीहइ-चौराद्विभेति; अन्तेउरे रमिउमागओ राया-- अन्तःपुरादू रन्त्वागत इत्यर्थः। (६) परापूर्वक जि धातु के योग में जो असह्य होता है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और पञ्चमी विभक्ति हो जाती है । यथा-अज्झयणत्तो पराजयइ । (७ ) जनधातु के कर्ता का आदिकारण अपादान होता है। यथा-कामत्तो कोहो अहिजाअइ, कोहत्तो मोहो अहिजाअइ । ६. प्रातिपादिक और कारक के अतिरिक्त स्वस्वामिभावादि सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है। मुख्यतः सम्बन्ध चार प्रकार का है-स्वस्वामिभाव सम्बन्ध, जन्य-जनक भाव सम्बन्ध, अवयवावयविभाव सम्बन्ध और स्थान्यादेश । साहणो धणं में स्वस्वामिभाव सम्बन्ध है, यत: साथु धन का स्वामी है। पिअरस्स, पिउणो वा पुत्तं में जन्य-जनकभाव सम्बन्ध है। पसणो पाअं में अवयव-अवयविभाव सम्बन्ध है, यतः पशु अवयवी है और पैर उसके अवयव हैं। गम् के स्थान में अइच्छ, अई और अक्स आदेश होता है, अतः यहाँ स्थान्यादेश सम्बन्ध माना जायगा। इन सम्बन्धों के अतिरिक्त कार्य-कारणादि और भी सम्बन्ध हैं, सम्बन्ध में षष्टी विभक्ति होती है। यथा-काअस्स अंगाणि पसंसेइ-कौए के अंगों की प्रशंसा करता है । जहा तुह अंगाणि अईव मणोहराणि तहा तमं समहराई गीयाई गाउं समत्थो सि-- जैसे तुम्हारे अंग सुन्दर हैं, वैसे ही तुम सुमथुर गाना गाने में भी समर्थ हो। (१) कर्मादि में भी सम्बन्धमात्र की विवक्षा होने पर पष्टी निभक्ति हो जाती है। यथा-तस्स बाहरणत्थं माहावाहिहाणा चेडी पेसिया-उसे बुलाने के लिए माधवी नाम की दासी को भेजा। तस्स कहियं-उससे कहा; माआए, माऊए वा सुमरइ-माता को याद करता है। ...
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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