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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण २११ त०-तेरहहि-हि-हि चल्छ०-तेरहण्ह, तेरहण्हं पं०-तेरहओ, तेरहउ, तेरहहिन्तो, तेरहसुन्तो स०-तेरहसु, तेरह इसी प्रकार चउद्दह, पण्णरह, सोलह, छद्दह, सत्तरह और अट्ठारह शब्दों के रूप होते हैं। कइ ( कति ) तीनों लिंगों में समान बहुवचन प०-का वी०-कह त०-कईहि-हि-हि चल्छ०–कइण्ह, कइण्हं पं०-कइत्तो, कईओ, कई उ, कईहिन्तो, कईसुन्तो स०-कईसु, कईसु वीसा (विंशति ) तीनों लिगों में एकवचन बहुवचन प०-वीसा वीसाओ, वीसाउ, वीसा वी०-वीसं वीसाओ, वीसाउ, वीसा त०-वीसाअ, वीसाइ, वीसाए वीसाहि-हि-हि चल्छ०-वीसाअ, वीसाइ, वीसाए वीसाण, वीसाणं, पं०-वीसाअ, वीसाइ, वीसाए, वीसत्तो, वीसाओ, वीसाउ, वीसाहिन्तो, वीसत्तो, वीसाओ, वीसाउ, वीसासुन्तो वीसाहिन्तो स०-वीसाअ, वीसाइ, वीसाए वीसासु, वीसासु सं०-हे वीसा हे वीसाओ, वीसाउ, वीसा इसी प्रकार एगूणवीसा, एगवीसा, दुवीसा, तेवीसा, चउवीसा, पण्णवीसा, छव्वीसा, सत्तवीसा, अट्ठावीसा, एगूणतीसा, तीसा, एगतीसा, दुतीसा, दोतीसा, तेतीसा, चउतीसा, पण्णतीसा, छत्तीसा, सत्ततीसा, अडतीसा, एगूणचत्तालीसा, चत्तालीसा, एगचत्तालीसा, बायाला, तेआलीसा, चउआलीसा, पण्णचत्तालीसा, छचत्तालीसा, सत्तचत्तालीसा, अडआलीसा, एगूणवन्ना, पन्नासा, एगावन्ना, दोवन्ना, तेवन्ना, चउवन्ना, पणवन्ना, छपन्ना, सत्तावन्ना, अट्ठावण्णा एवं अडवन्ना शब्दों के रूप होते हैं।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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