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________________ सं०-हे महु एकवचन एकवचन अभिनव प्राकृत-व्याकरण महूड, महूहिन्तो महसुन्तो छ०-महुणो, महुस्स महूण, महूणं स०-महुम्मि महूसु, महसू हे महू., महूई, महूणि जाणु (जानु) बहुवचन प०-जाणु जाणूई, जाणूई, जाणूणि वी०-जाणु जाणूइँ, जाणूई, जाणूणि इसके आगे महु के समान रूप होते हैं। अंसु ( अश्रु ) शब्द बहुवचन प०-अंसु अंसूई, अंसूई, अंसूणि वी०-अंसु अंसुइँ, अंसूई, अंसूणि इसके आगे. महु के समान रूप होते हैं। स्वरान्त नपुंसक लिङ्ग शब्द समाप्त । व्यञ्जनान्त पुल्लिङ्ग शब्द प्राकृत में व्यञ्जनान्त या हलन्त शब्द नहीं होते। कुछ हलन्त शब्दों के अन्त्य व्यञ्जनों का लोप होता है और कुछ हलन्त शब्द अजन्त-स्वरान्त के रूप में परिणत हो जाते हैं। अतः हलन्त शब्दों के साधनार्थ स्वरान्त शब्दों के समान ही नियम समझने चाहिए। अप्पाण, अत्ताण, अप्प और अत्त (आत्मन् ) एकवचन प०--अप्पाणो, अप्पा, अप्पो; अप्पागो, अप्पाणा, अप्पा; अत्ताणो, अत्ता, अत्तो अत्ताणो, अत्ताणा, अत्ता वी०-अप्पाणं, अप्पं, अत्ताणं, अत्त अप्पाणो, अप्पाणे, अप्पाणा, अप्पे, अप्पा; अत्ताणो, अत्ताणे, अत्ताणा, अत्त, अत्ता। बहुवचन
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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