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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण स्वरान्त नपुंसक लिंग शब्द ( ३५ ) नपुंसक लिंग में स्वरान्त शब्दों से पर में आनेवाले सु के स्थान में प्रथमा एकवचन में म् होता है । ( ३६ ) नपुंसक लिंग में स्वरान्त शब्दों से पर में आनेवाले जस और शस के स्थान में प्रथम और द्वितीया के बहुवचन में हूँ, इं और णि आदेश होते हैं । (३७) नपुंसक लिंग के सम्बोधन एकवचन में 'सु' का लोप होता है । ( ३८ ) सुके पर में रहने पर प्रथमा के एकवचन में इकारान्त और उकारान्त शब्दों के अन्तिम ह और उ को दीर्घ नहीं होता । नपुंसकलिंग के विभक्तिचिह्न बहुवचन णि, इँ, इं णि, इँ, इं एकवचन प०- म् वी० - म् सं०-० एकवचन 29 शेष विभक्तियों में पुल्लिंग के समान विभक्ति चिह्न होते हैं वण (वन) शब्द प०वणं वी० - वर्ण त० - वणेण च० - वणस्स पं० - वणत्तो, वणाओ, वणाउ, वाह, वणाहिन्तो, वणा - वणस्स छ०. स०―वणे, वणम्मि सं० - हे वण एकवचन प० धणं वी० -धणं १२ " बहुवचन वाइँ, वणाई, वाणि 39 वणे, व T 33 वणत्तो, वणाओ, वणाउ, वणाहि, वणाद्दिन्तो, वणासुन्तो वणाणं वणे, वणेस वाइँ, हे वणाईं, हे वाणि धण (धन) शब्द १७७ बहुवचन धणाणि इँ, धाई, घणाइँ, घणाई, धणाणि इसके आगे वीर शब्द के समान रूप होते हैं ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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