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________________ ११२ अभिनव प्राकृत-व्याकरण (क) ट= ड घडोर घटा-2 के स्थान में ड, विसर्व का ओत्व । नडोर नटः भडोर भट:- , (ख) ट = ढ केढवो कैटभः-ऐकार को एकार, ट को ढ और भ को व, विसर्ग को ओत्व । सयढो< शकट:-तालव्य श को स, ककार का लोप, अ स्वर शेष और य श्रुति तथा ट को ढ। सढा< सटा-ट को ढ। (ग) ट%ल फलिहोर स्फटिकः-संयुक्त स का लोप, ट के स्थान पर ल और क को ह। चविला< चपेटा-प को व, एकार को इत्व और ट कोल। फालेइ८ पाटयति-पा के स्थान पर फा, ट को ल, अकार को एकार तथा विभक्ति चिह्न इ। ( १७ ) संस्कृत की ठ ध्वनि का प्राकृत में ल, ट और ढ में परिवर्तन हो जाता है। ( क ) ठ = ल अंकोल्लो अङ्कोठ:- के स्थान पर ल हुआ है। अंकोल्लतेलं अङ्कोठतैलम्-ठ के स्थान पर ल, तकारोत्तर ऐकार को एकार । ( ख ) ठ -ह पिहडोव पिठर:–ठ का ह और र का ड हुआ है। (ग ) ठ = ढ पढ , पठठ का ढ हुआ है। पिढरो < पिठरः-3 को ढ तथा विसर्ग का ओत्व । ( १८ ) संस्कृत का ड वर्ण प्राकत में ल हो जाता है। वलयामुहं < वडवामुखम् --ड के स्थान पर छ । तलायं< तडागम्कीला< क्रीडा( १६ ) संस्कृत का ण वर्ण प्राकृत में विकल्प से ल में बदल जाता है । वेलू , वेणू < वेणु: (२०) संस्कृत के त वर्ण का प्राकृत में च, छ, ट, ड, ण, र, ल, व और ह में परिवर्तन होता है।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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