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________________ अभि प्राकृत-व्याकरण १०३ पुट्ठो स्पृष्टः संयुक्त स का लोप, पकारोत्तर ऋकार को उत्व, संयुक्त ष का लोप ट को द्वित्व, द्वितीय ट को ठ, विसर्ग को ओत्व । संवुअं संवृतम् - वकारोत्तर ऋकार को उत्व, तकार का लोप, अ शेष । मुसा, मोसादमृष - मकारोकर ऋकार को विकल्प से उ, उ के अभाव में ओ तथा मूर्धन्य ष को दन्त्य स । उस हो, वसहोदवृषभः- त्रकारोत्तर ऋकार को विकल्प से उत्व, विकल्पाभाव पक्ष में ऋकार को अ । (घ ) ऋ = ऊ । मूसा, मुसा, मोसादमृषा -- मकारोत्तर ऋकार के स्थान पर विकल्प से ऊकार, विकल्प भाव पक्ष में उकार तथा ओकार होने से तीन रूप बनते हैं । (ङ) ऋ = ए – - वेंट, विटं<वृन्तम् — कारोत्तर ऋकार को विकल्प से एकार, में इकार तथा त कोट । : ओ (च) ऋ = विकल्पाभावपक्ष मोसा मृषा - मकारोत्तर ऋ को विकल्प से ओश्व । वोटं वृन्तम्- - वकारोत्तर ऋकार को विकल्प से ओत्व । (छ) ऋ = = अरिदरिओ < दृप्तः दकारोत्तर ऋकार को अरि, संयुक्त प और अन्तिम ता लोप, अ स्वर शेष, विसर्ग को ओत्व । (ज) ऋ = दि आढिओ आहत : - मध्यवर्ती दकार का लोप और शेष ऋ के स्थान पर दि त लोप, अ स्वर शेष, विसर्ग को ओत्व । ( झ ) ऋ = रि- निम्न प्राकृत शब्दों में वर्तमान भाषा प्रवृत्ति के समान संस्कृत की ऋ के स्थान पर रि मिलता है । रिच्छो ऋक्षः - ऋ के स्थान पर रि और क्ष को च्छ, विसर्ग को ओत्व । अन्नारिसो< अन्यादृशः — संयुक्त य का लोप, न को द्वित्व, दकार का लोप और शेष स्वर ऋ को रि, श को स, विसर्ग को ओस्व । अन्नारिच्छो << अन्यादृक्षः - संयुक्त य का लोप, न को द्वित्व, दकार का लोप और शेष स्वर ऋ को रि, क्ष को च्छ तथा विसर्ग को ओत् । अमूरिसो < अमूहश:- - दकार का लोप, शेष स्वर ऋ को रि, तालव्य श को विसर्ग को ओत्व । दन्त्य स
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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