SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण ( ११८ ) धूर्तादिगण के शब्दों को छोड़कर - अन्य होता है । यथा 9 केवट्टो कैवर्त्तः -- ऐकार को एकार, र्त्त को ह और ओव । वट्टी < वर्तिः– र्त के स्थान पर ह और इकार को दीर्घ ईकार । णट्टओ नर्तकः - न कोणकार, र्त को ह और क लोप, अ स्वर शेष और ओव संवट्टि पयट्टइ के स्थान पर ट्ट संवर्तिकम् - र्त को ह और क लोप तथा अ स्वर शेष । प्रवर्तते -प्र के स्थान पर प, व लोप और अ स्त्रर शेष, यश्रुति, और विभक्ति चिह्न इ । वटू टुलं वर्तुम् के स्थान पर ह । रायवट्टयं राजवर्तकम् - ज का लोप और अ स्वर के स्थान पर यश्रुति, र्त को ह तथा क लोप और अ स्वर के स्थान पर यश्रुति । विशेष - धूर्तादिगण के निम्न शब्दों में यह नियम लागू नहीं होता । K धुत्तो धूर्त :- संयुक्त रेफ का लोप और त को द्वित्व और ऊकार को हस्व । कित्ती < कीर्त्तिः रेफ का लोप, त को द्वित्व और इकार को दीर्घं । वत्ता वार्त्ता - रेफ का लोप, वा के आकार को ह्रस्व । आवत्तणं आवर्तनम् - संयुक्त रेफ का लोप, त को द्वित्व और न कोण । निवत्तणं निवर्तनम् - "" पयत्तणं प्रवर्त्तनम् - प्र को प " संवत्तणं संवर्त्तनम् - आवसओ आवर्तकः अ स्वर शेष तथा ओत्व | - निवत्तओ निवर्तकःपवत्तओ प्रवर्तकः - " 39 99 35 काट आदेश विकल्प से ,, " י, 19 19 " "" 4 " "" 99 संवत्तओ संवर्तकःवत्तिओ वर्तकःवत्तिआ < वर्तिका - संयुक्त रेफ का लोप, त को द्वित्व और क लोप तथा "" "" " आ स्वर शेष । 99 कलोप " 39 123 "" कत्तिओ कर्त्तकः - रेफ का लोप, ऋकार का इ, त को द्वित्व, क लोप और अ स्वर शेष तथा ओत्व । ८ १. स्याधूर्तादौ ८ २ ३०. | हे० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy