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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण अप्पज्जो, अप्पण्ण < अल्पज्ञ:-संयुक्तादि ल लुक् , प द्वित्व; ज्ञ के ज का लोप और ज द्वित्व; ज लोपाभावपक्ष में ण द्वित्व और अकार को ऊकार । अहिजो, अहिण्णू < अभिज्ञ:—भ को ह, ज् लोप, ज को द्वित्व; विकल्पाभाव पक्ष में ण को द्वित्व, अकार को ऊकार । जाणं, णाणं< ज्ञानम्-अ लोप और ज शेष, नकार को णत्व, विकल्पाभाव में ज्ञ के स्थान पर ण । दइवज्जो, दइवण्णू < दैवज्ञः-ऐ के स्थान पर अइ, ज लोप और ज को द्वित्व । इंगिअज्जो, इंगिअण्ण, इंगितज्ञः-त लोप और अ स्वर शेष; ज लोप, ज द्वित्व । मणोजं, मणोण्णं - मनोज्ञम् - लोप और ज को द्वित्व । पज्जा, पण्णा८ प्रज्ञा-अ लोप, ज को द्वित्व, विकल्पाभाव पक्ष में ज लोप और ण को द्वित्व । अजा, अण्णा< आज्ञा संजा, सण्णा < संज्ञा—ज लोप और ज शेष, स्वर से पर न होने से द्वित्वाभाव; विकल्पाभाव पक्ष में ज लोप और अवशेष ण को द्वित्व। (१४२ ) वर्ग के द्वितीय और चतुर्थ वर्गों के द्वित्व होने पर द्वितीय वर्ण के पूर्व उसी वर्ण के प्रथम और तृतीय अक्षर हो जाते हैं। यथा वक्खाणं < व्याख्यानम् –य लोप, शेष ख को द्वित्व तथा पूर्ववर्ती ख को क । अग्यो अर्घः-संयुक्त रेफ का लोप, घ को द्वित्व और पूर्ववर्ती घ को ग । ( १४३ ) दीर्घ स्वर एवं अनुस्वार से पर में रहनेवाले संयुक्त शेष व्यञ्जन का द्वित्व नहीं होता। जैसे ईसरो< ईश्वरः-संयुक्तान्त्य व का लोप और पूर्ववर्ती दीर्घ स्वर होने से स को द्वित्व का अभाव। लासंदलास्यम्-संयुक्तान्त्य य का लोप, पूर्व में दीर्घ स्वर होने से द्विस्वाभाव । संकेतो< संक्रान्त:-संयुक्तान्त्य र का लोप, पूर्व में अनुस्वार रहने से द्वित्वाभाव । संझा < सन्ध्या-संयुक्तान्त्य य का लोप, , , १. द्वितीय-तुर्ययोपरि पूर्वः ८।२।६०. हे । २. न दीर्घानुस्वारात् ८।२।६२. हे० । ...
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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