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एकवक्त्रा चतुर्हस्ता मुकुटेन विभाजिता । प्रभामण्डल संयुक्ता कुण्डलान्वितशरवरा", अक्षष्ा कीणा पुस्तकं, महाविद्या प्रकीर्तिता
बराक्षामं पुस्तकंच सरस्वती शुभावहा उ हंसाया प्रकर्तव्या साक्षस्त्रकमण्डलुः सुषं च पुस्तकं धत्ते उर्ध्व हस्तद्ये इदमाः
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अब मुजवादी, यार लुकवासी, मुर्कुटी शाल, डांतिना समूहसयुक्त रूपवती), डुडलायुक्त शखा, सक्षमामा डुमय कमान पुस्तक में धारण करनावी सरस्व वाय
वर अक्षमाया मम सन पुस्तकने धारण कल सरस्वल शुभ ईज सापनारी ६६ र्स सरस्वती हंस उपर जडेल जनावनी, सशसूत्र-कक्षमाळा, डुमंडलु, खुलने विशेष
सरित धनाची मने उपरना नराधमां स्वाहार्नु जनाने की हाथ पाय भने पुस्तकने धारण करती मूर्ति जवानची
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