________________
ܚܐ
नौ स्तो से प्रथम क्र
10.
चन्द्रानना जगद्धात्री, बीणाम्बुजकरया
शुभगा सर्पमा स्थाइए, अम्मिनी स्तम्भिनी स्वरा ॥ ६ ॥ काली कपालिनी कौली, बिन्ता राज्ञी त्रिलोचना ।
पुस्तकव्यग्रहस्ता च योगिन्यमितविक्रमा ॥१॥
अष्टोत्तरशतनामगर्भित सरस्वतीस्तोत्रम्
a. माता, राममयुक्त के हाथ वापी, शुभ तिन
"
बी
वान, सर्वव्यापिनिलिनी, स्तंलिनी, स्वरा, डाल, ड्रापालिक, डौल, विज्ञा, राशी, भिलोचना, पुस्तकथा युक्त राथवाल, योगिनी, सुमित विक्रमा. -(साधा सरस्वतीनां नामो)
२.पा ३२
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या श्वेतपद्मासना।'
या बीणा वरदण्डमण्डितकरा या शुभ्रवस्त्रावृता ॥ या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1911श्रीशारदास्तोत्रम
ने हेवी डुह येई श्मि मोलनों रार समान गौरवर्णाछ, श्वेत तुमय उपर जठेला छन् भनई हाथमा का करते. धारणा नय छ, ना श्वेत वस्त्र पररेतुं छ, केएन ब्रह्मा, कृष्ण, शंकर साहि देवोभ सर्वदा मान्छु नमाळीला घे, ठेपूल काम संपूर्ण कडपणा दूर करणारीछे सेरस्वल देवी माई रक्षाणडुरा, 1)- M.V. 1. २. क परिशिष्टम्
you
कुन्देन्दुहारघनसारसमुज्जवलाभा
- विश्राणिताश्रित जनश्रुतसारलाभा ।
मुक्तामसूत्रवरपुस्तकपद्मपाणि:
राज्याय सा कविकुले जिनराजवाणी ॥२॥ -भारतीछन्दांसि
मोगरा, महमा, मोलनो हार, उर्पूर, ना समान प्रधान भने उक्त si क, साश्रितः जेटले उपासना करनार मनुष्याने खाप्यो छ श्रुतनो-शास्त्र वो श्रेष्ठ साल नरानर्मी, मोलन कक्षमा जा, पर, पुस्तक भने हुमक छे हाथमा नेाहीन कधी ते निरावना वाएगी दुविनुसक ने पिषे शक्यते महि-साधिपत्यन लोगवनारी पे