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________________ ३८ संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ यह जीवन-प्रदान करता है और उसकी आज्ञा का पालन देवगण करते हैं । यह देवों का भी देव है। इस प्रकार की बड़ी सुन्दर दार्शनिक कल्पना हिरण्यगर्भ के बारे में ऋग्वेद में की गई है । यही हिरण्यगर्भ प्रजापत्ति ('प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव', ऋ० १०.१२१.१०) स्वरूप है। पुराणों में ब्रह्मा को प्रजापति कहा गया है । यह ब्रह्मा सर्वशक्तिमान् परमात्मा तथा महालक्ष्मी से समुद्भूत है । जिस प्रकार सर्वशक्तिमान् परमात्मा से ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों देवों की उत्पत्ति मानी जाती है, उसी प्रकार लक्ष्मी, सरस्वती तथा अम्बिका तीन पौराणिक देवियों की उत्पत्ति महालक्ष्मी से मानी गई है। इस सन्दर्भ में एक बहुत ही सुन्दर प्रसङ्ग मिलता है, जिसके अनुसार सरस्वती की उत्पत्ति का प्रसङ्ग वर्णित है । कहा जाता है कि एक देवी है, जो सृष्टि के समय विभिन्न रूपों को धारण करती है । वह देवी महालक्ष्मी के आज्ञानुसार अपने को स्त्री तथा पुरुष द्विधा रूप में विभक्त करती है । जिस प्रकार पुरुष-रूप के विभिन्न नाम हैं, उसी प्रकार स्त्री-रूप के सरस्वती के पर्यायवाचक विद्या, भाषा, स्वर, अक्षर तथा कामधेनु नाम हैं। महालक्ष्मी से सत्त्वोत्पत्ति का नाम महाविद्या, महावीणा, भारती, वाक्, सरस्वती, आर्या, ब्राह्मी, कामधेनु आदि हैं । पूर्व की भाँति ये सब नाम भी सरस्वती के पर्याय हैं । सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर ज्ञात होता है कि ब्रह्मा की ब्राह्मी, मानसी तथा रौद्री तीन प्रकार की सृष्टियाँ हैं । इन्होंने सर्वप्रथम लोकों की उत्पत्ति की । तदनन्तर अपने पुत्रों तथा कन्याओं को उत्पन्न किया । ये उनकी ब्राह्मी सृष्टि के अन्तर्गत आते हैं। यदि दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाय, तो ब्रह्मा से सरस्वती की उत्पत्ति मनसिज है। पुराणों की यह प्रमुख विशेषता रही है कि वे अति सूक्ष्म एवं दार्शनिक विषय को भी बड़े ही सुन्दर रूप में प्रस्तुत करते हैं । यहाँ तक कि उन भावों के चिन्तन में स्थूलता का आश्रय लिया है, ताकि पाठक उनको भली-भाँति समझ लें और उसका उन पर प्रभाव पड़े । फलतः ब्रह्मा का सरस्वती को पुत्री-रूप में उत्पन्न करना, उससे विवाह करना तथा युग्म से सन्तानोत्पत्ति', ये सम्पूर्ण प्रतीकात्मक अथवा आलङ्कारिक वर्णन हैं । सरस्वती को ऋग्वेद तथा अन्य वेदों में विभिन्न रूप मिलते हैं। ब्राह्मणों में आकर उसका वाक् से तादात्म्य स्थापित हो गया है । पौराणिक युग में इस वायूपी १. तु० आचार्य बद्रीनाथ शुक्ल, मार्कण्डेयपुराणः एक अध्ययन (वाराणसी, १९६१), पृ० ६४-६५ २. टी० ए० गोपीनाय राय, एलिमेण्ट्स ऑफ हिन्दू आइकोनोग्राफी, भाग १ (२) (मद्रास, १६१४), पृ० ३३५-३३६ ३. मत्स्यपु० २.३०-४३; ३.४३-४४ ४. श० ब्रा० २.५.४.६; ३.१.४.६,१४, ६.१.७-६; ४.२.५.१४, ६.३.३; ५.२. २.१३, १४, ३.४.३, ५.४.१६, ७.५.१.३१; ६.३.४.१७; १३.१.८.५; १४.२.१.१२; तै० ब्रा० १.३.४.५, ८.५.६; ३.८.११.२; ऐ० ब्रा० २. २४; ३.१-२,३७, ६.७; ताण्ड्य बा० १६.५.१६; गो० बा० २.१.२०; शा० ब्रा० ५.२; १२.८; १४.४
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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