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________________ संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ .... ३. घृताची सरस्वती के विशेषण के रूप में यह शब्द केवल एक बार प्रयुक्त हुआ है । श्री माधव ऋगर्थदीपिका में इसका अर्थ 'उदकमञ्चन्ती' करते हैं । यहीं पर इस दीपिका के संपादक श्री लक्ष्मण स्वरूप दो" हस्तलिपियों का हवाला देते हैं, जिनमें शब्द का अर्थ 'उदकञ्चतो' किया गया है । सम्पादक यहीं पर भट्टमास्कर मिश्र की टीका का हवाला देते हैं, जहाँ शब्द का अर्थ 'घृतमाज्यभागं प्रत्यञ्चन्ती' किया गया है । सायण इसका अर्थ 'घृतमुदकमञ्चती', विल्सन 'जल-वर्षण करने वाली' और ग्रीफिथ 'वामी' अर्थात् घी अथवा सारगर्भित जलों से भरी अथवा उनका वर्षण करने वाली करते हैं। . इसके अतिरिक्त इस शब्द का ऋग्वेद में अन्यत्र प्रयोग भी हुआ है। एक स्थल पर यही शब्द स्वणिमा विद्युत् का विशेषण बन कर आया है, जो (विद्युत्) जल की वर्षा करती है । एक दूसरे स्थल पर सायण ने इस शब्द का अर्थ 'घृतेनाक्ता नक' किया है । आगे के एक मंत्र में यह शब्द इन्द्र के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है । इसकी व्याख्या करते हुए सायण लिखते हैं : हे पुरुहूत बहुभिराहूतेन्द्र धृताची। घृतशब्दो हविर्भागमुपलक्षयति तथा च सोमाज्यपुरोडाशादिलक्षणं हविरञ्चति प्राप्नोतीति घृताची॥ एक अन्य स्थल पर यह शब्द द्वितीया एक वचन में प्रयुक्त हुआ हैं, जिससे 'धीः' अथवा बुद्धि का भाव प्रकट होता है । सायण लिखते हैं : ___ 'घृतमुदकमञ्चति भूमि प्रापयति या धीर्वर्षणं तां धृताचीम् ..." उपर्युक्त अवलोकनों से हम निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुँचते हैं : घृताची वह है : (क) जो जल-दान अथवा जल-वर्षण करती है, (ख) जिसके लिए घृतेनाक्ता स्र क् अर्पित की जाती है अथवा जिसे घृत, सोम, पुरोडाशादि युक्त बलि दी जाती है, १४. ऋ०५.४३.११ १५. पी० ==ए पाम-लीफ मलयालम मैन्युस्क्रिप्ट, पंजाब यूनिवर्सिटी लाइ बेरी। डी० =ए पाम-लीफ मलयालम मैन्युस्क्रिप्ट, लालचन्द पुस्त कालय, डी० ए० वी० कालेज, लाहौर। १६. वी० बी० -- भट्टभास्कर मिश्र को तैत्तिरीयसंहिता की टीका। १७. वही। १८. ऋ० १.१६७.२ १६. वही, ३.६.१ . २०. वही, ३.३०.७
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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