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________________ ऋग्वेद में देवियों का त्रिक ६६ तथा उस के आनन्द को जीतता है। भारती स्वर्गीय वाणी का ज्ञान है, जो निर्वाण लाता है।" सरस्वती पौराणिक काल में महालक्ष्मी तथा दुर्गा के साथ त्रिक बनाती है । यहां पार्वती के स्थान पर दुर्गा को प्रदर्शित किया गया है, जो दुर्गा शक्ति की अवतार है। सामान्यतः वैदिकेतर काल में लक्ष्मी ही त्रिक बनाती हैं, परन्तु पुराणों में कहीं-कहीं महालक्ष्मी को लक्ष्मी के स्थान पर रखा गया है। यहाँ महालक्ष्मी का अर्थ लक्ष्मी के अर्थ से भिन्न है। यह महालक्ष्मी परमात्मा के समान स्त्री-शक्ति को बोधिका है तथा इसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सरस्वती, अम्बिका आदि की उत्पादिका माना गया है। ४१. डॉ० सूर्य कान्त, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० १२८ ४२. विस्तृत ज्ञान के लिए द्र० ब्रह्माण्डपुराण ४.४०.५ तथा आगे । इस सन्दर्भ में कहा गया है कि सर्वप्रथम एक दम्पति की उत्पत्ति हुई, जो एक स्त्री तथा पुरुष के रूप में थी। इसकी उत्पत्ति महालक्ष्मी के कारण हुई। इस उत्पत्ति के लिए महालक्ष्मी ने सबसे पहले तीन अण्डों को उत्पन्न किया । उन तीन अण्डों में से पौराणिक त्रिक की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा श्री के साथ, शिव सरस्वती के साथ तथा विष्णु अम्बिका के साथ उत्पन्न हुए । वेदों में कहा गया है कि सर्वप्रथम जब परमात्मा सृष्टि करना चाहते थे, तो उन्होंने देवों को पैदा किया तथा उन देवों ने परमात्मा की इच्छानुसार सृष्टि का विस्तार किया। इसी प्रकार यहाँ महालक्ष्मी परमात्मा की महाशक्ति जान पड़ती है, जो सृष्टि के विस्तार के लिए स्त्री-रूप में प्रसिद्ध है।
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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