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________________ 'अहम्' यह श्री मंत्रराज बीज, सिद्धचक्र और नवपद बीज है । मंत्रपदोंमें यह दूसरा पद है। परंतु यह तमाम मंत्रपदोंमें रानाके समान होनेसे इसे 'मंत्राधिराम कहा जाता है। अकारादि हकारान्तं रेफमध्यं सबिंदुकम्, तदेव परमं तत्वं यो जानाति स तत्ववित् । महा तत्त्वमिदं योगी यदैव ध्यायति स्थिरः, तदैवानसंपद् भूर्मुक्ति श्रीरूप तिष्ठते । मर्थ-'अ' जिसके आदिमें हैं और 'ह' जिसके अन्तमें हैं, तथा • बिन्दु सहित 'रेफ' जिसके मध्य-बीच में है, ऐसा जो अहं (नामक) मंत्र पद है वही परम तत्त्व है। उसे जो मानता है वही यथार्थमें तत्वज्ञाता है । जब इस महान तत्वका योगीलोग स्थिर होकर ध्यान करते हैं तब आनंद स्वरूप सम्पतिकी भूमिके समान, मोक्षकी विभूति उसके मागे माकर उपस्थित होजाती है । कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमान् श्री हेमचंद्राचार्यजी प्रायः अपने हरएक ग्रंथकृतिमें आधमंगलके नाते इसी पद ( अहं) का स्मर्ण करते हैं। तथा 'सिद्धहेम शब्दानुशास' नामक अपने सर्व प्रधान ग्रन्थमें तो, इस मंत्राक्षरको वैयाकरण शास्त्रके खास आद्य सुत्रके गुथ देते हैं और निम्नलिखित उसकी व्याख्या करके उसके रहस्य और महत्वको भी समझा " अहं" (१-१-२) " अ मित्येक्षरं परमेश्वरस्य परमेष्टिनो वाचकं सिद्धचक्रस्यादि बीनं सकलागमोपनिषद मूतम शेष विघ्नविघात निघ्नमखिलद्रष्टाद्रष्ट फल संकल्प कल्पद्रुमोपमंशास्त्राध्ययना ध्यापनावधिप्रणिधेयम् ।" अर्थ-"महं, यह अक्षर परमात्माके स्वरूप परमेष्टीका वाचक है, सिद्धचक्रका आदि बीज है । सकल भागमों याने सभी शास्त्रोंका रहस्यभूत है। सभी विद्या समूहोंका नाश करनेवाला है, सब द्रष्ट ऐसे जो राज्यसुखादि सुख और अद्रष्ट ऐसे जो स्वर्ग सुखादि फक हैं, वह प्रदान करनेके लिए, संकल्प करनेवालों के लिए मनोवांछित फल देनेवाले कल्पतरुके समान है। सभी भागमोंका सभी शास्त्रोंका ॐ यह रहस्य किस प्रकार है, इसके उत्तरमें न्यासकारने समझाया है कि ज्यों मई पदमें परमेष्टीका परम तत्व समाविष्ट हुमा है त्यों ही
SR No.032025
Book TitleShantivijay Jivan Charitra Omkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAchalmal Sohanmal Modi
PublisherAchalmal Sohanmal Modi
Publication Year
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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