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________________ [ ] माण्युं कहेवाशे. विशेष शुं कहुं ? एमनो आशीर्वाद एटलो बधो बळवान छे के जे केसने माटे दरेके दरेक माणसोए आशा छोडी दीधी हती, तेनो महान् रोग पण मुक्त थयो, ए मारो पोतानो खुद अनुभव छे, हुं तो दुनियामां महान योगीश्वर तेने समजुं छु. अहाहा! दुनियामां आजे एवा देवरत्नो छे जेने कोई ओळखी शक्या नथी, कारणके एमनी पासे सिंह भने वाघ जेवा क्रुर जानवरो पण पाळेला माफक आवी बेसी जाय छे. __एवा महान पुरुषोनो भेटो थवो काई साधारण वात नथी. एकवार तो दरेके दरेक मनुष्ये जरूर एमनां दर्शन करवा जोईए, एवी मारी दरेके दरेकने भलामण छे. एमनो जे मार्ग छे ते सत्य छे. मारुं ते सत्य नहिं, पण सत्य तेज मारुं छे, एवो गुरुदेवनो दरेकने एक सरखो उपदेश छे. गुरुदेव पोते जाते रबारी कुलमा जन्मेला अने दरेके दरेक प्राणी उपर समभावना राखवी एवो एओश्रीनो उपदेश छे. अने विश्वनुं कल्याण थाओ एवी मावना छे. जैन जीवन २९-२-२९. श्रीमान् सरदार कीबे साहब डेप्युटी प्राईस मिनिस्टर, इन्दौरके लेखपरसे। हालमें ही रोहीड़ा ग्राम (रियासत सिरोही)में योगनिष्ठ आचार्य माहराज श्री विजयकेसरसुरीश्वरजीके शिष्य प्रभावविजयजीके दीक्षा देनेके समयमें शांतमूर्ति योगनिष्ट माहत्मा श्री शांतिविजयनी माहराजको आचार्य पदवी देने के लिये आचार्यश्री विजयकेसरसुरीश्वरजी माहराज, संघ तथा दूसरे भी प्रसिद्ध आचार्यो, उपाध्यायों, साधुओं तथा अन्य संघके आगेवानोंने यह आचार्य पदवी खीकारनेके लिये बहुत आग्रह किया था परन्तु आपश्रीने इस बातको मंजूर नहीं किया और कहा कि ' मेरेको जो पदवी चाहिये वह मुझे कोई देसके ऐसा नहीं है और तुम जो पदवी देते हो उसकी मुझे आवश्यक्ता नहीं।' पदवीके भूखे जैन साधु ऐसे महात्माका पाठ सीखकर आदर्श साधुतामेंसे झरती सच्ची निस्टहताका दुनियाको भान करानेको मानके भूखिये वेशधारी इस साधुताको मिटाकर भाव साधु बने ऐसी आशा करते हैं। ऐसे पवित्र जीवनको व्यतीत करनेवाले महात्मा शांतमूर्ति मुनि महाराजश्री शांतिविजयजीके बोध वचन कंगालमें कंगाल मनुष्यमें भी दिव्यता गुप्तरूपसे विद्यमान है। मैं अंतरको पूजनेवाला हूं।
SR No.032025
Book TitleShantivijay Jivan Charitra Omkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAchalmal Sohanmal Modi
PublisherAchalmal Sohanmal Modi
Publication Year
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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