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________________ ॥ बन्दे जिमवरम् ॥ स्वामी दर्शनानंद जी के व्याख्यान की समीक्षा । सर्व साधारण सज्जन महोदयोंकी सेवा निवेदन है कि प्राज सायंकाल - को ८ बजेसे स्थान गोदोंकी नशियां में आगरे दरवाजेके बाहर श्रीमान् कंवर दिग्विजयसिंदगी साहिब स्वामी दर्शनानंदजीके कलके दिये हुये जैनियों की मुक्ति विषयक व्याख्यानको समीक्षा करेंगे । अतः सर्व सज्जन महाशय उपर्युक्त समय पर अवश्यमेव पधारें और व्याख्यान श्रवण कर लाभ उठावें । विशेष्वलम् ॥ प्रार्थी-घीसूलाल अजमेरा मंत्री-श्री जैन कुमार सभा अजमेर । ता० २८ जून १९१२ सन्ध्याको प्रागरे दरवाजे के बाहर गोदोंकी नशियों के विस्तृत और सुसज्जित पौष्ठालमें सभाको प्रथम वैठक हुई। भजन व मङ्गलाचरण होने के पश्चात् माष्टर पांचाल जी काला ने स्वागत कारिणी कमेटी के सभापतिकी हैसियतसे एक धक्तता दी जिसमें कि आपने सर्व भाइयों का स्वागत करते हुये जैन धर्मको सच्ची प्रभावनाको वड़ी आवश्यकता दिखलायो । सर्व स. म्मतिसे राय बहादुर सेठ नेमीचन्द जी सोनीके सुपुत्र कुंवर टीकमचन्द जी उत्साही और धर्मात्मा सज्जन सभापति निश्चित हुये और आपने अपनी पुस्तकाकार छपी हुई वक्तृता पढ़ी जिसकी कि मुद्रित प्रतियां सभामें वांट दी गयीं । सभापतिका भाषण यह थाः.. ॥श्रीः ॥ श्री जैनकुमार सभा अजमेर के प्रथमाधिवेशन के समय सभापति श्रीयुत कवर टीकमचन्द्र जीका भाषण । ... ..( मंगलाचरण अकलङ्कस्तोत्रका वां श्लोक) __ मान्यवर महोदय ! भाज अत्यन्त हर्ष का समय है कि आप जैसे परोपकारी धर्मात्मा सज्जनोंने अजमेर नगर में पधार कर हम लोगों को प्राभारी किया है, मैं इसके लिये माप लोगोंको हार्दिक धन्यवाद भेट करता हूं जो पद सना मुझे देना चाहती है उसके योग्य यद्यपि मैं नहीं हूं तथापि प्रापके कहनेको टाल भी नहीं सकता, अतः मैं इस पद को सहर्ष स्वीकार करता हूं
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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