SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मामुमार कार्य करेगा यदि ता० को ही शास्त्रार्थ करना मंजूर होता तो | कल बचा होगया था, यह सारी टालने की बात है। - ता०८-७-९८९२ जयदेव शर्मा मंत्री आर्य समाज अजमेर। मङ्गलवार जुलाई १५१२ ईस्वी। ___ भार्यसमाजके कलके विज्ञापनानु पार हमारी ओरसे शास्त्रार्थ के विषय में मैजिष्टेटको प्राज्ञा प्राप्त करनेके अर्थ श्रीयुत सेठ ताराचन्दजी, लाला प्यारेलालजी जौहरी, सेठ चौथमलजी वैद्य तथा पन्नालाल जी भैंसा रईसान अज. मेर नियत हुये जिनमेंसे नीचे के दोनों सज्जन माज कचहरी में दस्तखत देनेके लिये दिनके तीन बजे पहुंच गयेथे परन्तु आर्यसमाजकी ओरसे नियुक्त प्रति. निधि वाबू गौरीशङ्करजी वैरिष्टरने उस समय इस विषयमें बातचीत करने से विल्कुल इन्कार करदिया और वाबू मिट्ठनलाल जी वकील वात ढूंढ़ने पर मी कचहरी में नहीं मिले । अतः हम लोग लौट आये और सर्व साधारशके शापनार्थ निम्न विज्ञापन प्रकाशित हुना ॥ + बन्दे जिनवरम् + शास्त्रार्थसे ना हटैं, करो न टालमटोल । छिपे रहोगे के दिना, मढ़े कागजी खोल ॥ सर्व साधारण सज्जन महाशयों को सेवामें ( जो कि दोनों मोरको कार वाहियों और विज्ञापनों को ध्यानपूर्वक देख रहे हैं ) यह निवेदन करने की कोई आवश्यकता नहीं है कि शास्त्रार्थको कौन तय्यार हैं और कौन उनमें केवल कागजी घोड़े ही दौड़ाकर टालमटोल कर रहा है क्योंकि वे भलीभांति जानते हैं कि जब कि हम लोग नार्यसमाजको सभी बातों को मानते जाते हैं तब हम क्योंकर शास्त्रार्थ से इटरहे हैं। कल इमारी श्रीजैनतत्त्वप्रकाशिनी सभाके कार्यकर्तागण पुनः प्रातःकाल और सायङ्काल दीवार मार्यसमाज भवन में शास्त्रार्थके शेष नियम तय करने के लिये गये पर शोक है कि भार्यसमाजके मन्त्रीजीने नियमादि तय करने या शास्त्रार्थक विषय किसी भी प्रकार की बातचीत करनेसे सर्वचा मार करदिया ॥
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy