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________________ (६९) जिसमें कि पार्यसमाजका पक्ष यह है कि "इस सृष्टिका कर्ता ईश्वर है" और जैनियोंका पक्ष यह है कि "ईश्वर सष्टिका कर्ता नहीं है। चौथा नियम शास्त्रार्थक समयके विषयमें पा जिममें कि मार्यसमाजका काहगा यह था कि शालार्थ परसोंसे शुरू हो और श्री जैन सवप्रकाशिनी सभाका कहना यह था कि शास्त्रार्थ कलसे ही शुरू हो । इस विषयपर कई घंटों तक वहस होती रही पर यह निग्रम तय न हुमा और प्रधाम बाबू गौरीशङ्करजी वैरिष्टरके इस कथनानुसार कि "सभा वर्खास्त की जाती है आप लोग जाइये" हम लोग उठ कर चले आये परन्तु अब आर्यसमाजने "शाखासे कौन भगा और "नकली सिंहका असली रूप प्रकट होगयो” शीर्षक विज्ञापनों में यह सिद्ध करनेकी चेष्टाकी है कि जैन लोग शास्त्रार्थसे पीछे हट गये। समाजका ऐसा लिखना सर्वथा मिथ्या और पब्लिकको धोका देकर अ. पने ऊपर माये हुए शास्त्रार्थसे हटने के दोषकी झूठी सफाई करना है। हमारी श्री जैन तत्व प्रकाशिनी सभा आर्यसमाजकी किसी भी टालम टोलपर ध्यान न देकर उससे नियमानुसार लिखित शास्त्रार्थ करनेको सर्वथा और सर्वदा उद्यत है और जब कि आर्यसमाज भी अपने को उसके लिये तप्यार प्रगट करता है तो हमारी श्री जैनतत्त्वप्रकाशिनी सभा उसके विज्ञाप. नों में प्रकाशित तीसरे नियमके अनुसार ही 6 जुलाई को पब्लिक शास्त्रार्थ करनेको तय्यार है। मतः समाजको उचित है कि यह शास्त्रार्थ के शेष नियम आज ही तय करदे जिससे कि शास्त्रार्थ अति शीघ्र ही प्रारम्भ होजाय । ऐसा न होनेसे यह समझा जायगा कि आसमाज शास्त्रार्थ करना नहीं चाहती ॥ घौसलाल अजमेरा मन्त्री श्री जैन कुमार सभी अजमेर ता० ८ जुलाई सन् १९९२ नारपर्युविजापनका उमा भार्य समाज की ओर से जाम रात की प्रमाडित हुआ। अब पछताये होत का जब खुलगई सारी पोल. जिन लोगों ने कल समान मंदिर में हमारे सरावगी भाइयों की करतू.
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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