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________________ आर्यसमाजके भवन में हम लोग अपने साथ सर्व साधारण (जिनको प्रार्य समाज: मामूली दूझानदार समझता है) की भीड़ नहीं ले गये थे वरन हम लोगों के सौभाग्यसे वह लोग हमारे विना बुलाये स्वयं पहुंच गये थे। जब कि समाज इसने गोगोंके सामने की मातों को यों अन्यथा प्रकाशित करनेका साहस करता है तक न मालम दम लोगों के ही अकेले होने पर वह क्या कर गुजरता। चाहा तो समाजने बहुत था कि हम लोग अकेले में ही नियम तय करें पर यह बहुत अच्छी वात हुई कि हम लोग उसकी वैरिष्टरी घालों में | नहीं पाये जब कि समाजने हम लोगों के पहुंचने से बहुत पूर्व ही एक लम्बे चौड़े | साइनबोर्ड में टगना ( लम्बा बांसः) लगाकर मोटे मोटे हरूफों में यह लिख कर हम लोगोंके सामने रख छोड़ा था कि "आज सन्ध्याको स्वामी दर्शना. नन्द जीका व्यारूपान होगा" तो वह यह कैसे कह सकता है कि दो नियमों के तय हो जाने पर हम लोगोंको दर्शनानन्द स्वामी का पंजाबसे आना (उन के छतसे नीचे उतर कर दर्शन देनेसे ) प्रगट हुआ जिससे कि हम लोग हक्क वको रहगये और शास्त्रार्थ से डरगये। यदि दुर्जनतोषन्यायसे समाजका कहना ही थोड़ी देरको मानलिया जाय तो क्या हम लोग समाजको पुगः चेलेंगदेनेसे पूर्व यह नहीं जान सकते थे कि समाज अपने एकमात्र प्राधारभन स्वामी दर्शनानन्द जी सरस्वती महाराज को एकवार हम लोगों से पुनः मासा करनेको उपस्थित करेगा और स्वामीजीको मिम मान रक्षार्थ प्रत्यः समें हम शाखार्थको उद्यत हैं. ऐसा अगत्या दिखलाना ही पड़ेगा। शास्त्रार्थक प्रबन्धका सारा बोझा प्रवक्री चार आर्यममान पर ही रखने को हम पूर्व ही प्रकाशित करचके ये तब यह कैसे सम्भव है कि स्वामीजीको देखकर शास्त्रार्थ दालनेके अर्थ हमने ऐसा किया। मार्यसमाजका लेख बदती. व्याघात दोष से दूषित है क्योंकि उसका लिखना है कि दो मियमोंके तम हो मान पर स्वामीजी भाये और उनको देखकर हम लोग, प्रअन्धका बोका आ. यसमा के सिर पटकने लगे। परन्तु दूभरे मियम के तय होने पर आर्यस माज के जियो प्रायका बोझ जा पड़ा था क्योंकि दूसरा लियात पढ़ था कि "शास्त्रार्थ क्यालिक तौर पर, ममैयोंके नौहरे में होगा और उसका यथोचित प्रबन्ध मार्यसमाजू, करेगा आर्यसमाजको कुछ तो पूर्वापर विचार कर लि. सा-महिये । क्या उसने यह समझ लिया है कि पविज्ञक इतनी मूर्ख है |
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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