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________________ (५५) कि यह जलसा कबतक रहेगा, हुल्लड़ मिटना चाहिये । तब प्रधान जी ने सरावगी भाइयों से फिर कहा कि अलग कमरे में चले चलिये वा इन नीचे लिखी बातों मेंसे एकबात मंजूर करलीजिये ॥ (१) यदि शास्त्रार्थ के प्रबन्ध को कायम रखने व हुल्लड़ रोकनेके लिये टिकट द्वारा प्रबन्ध मंजूर हो तो समाज ता०८ को ही शास्त्रार्थ का प्रबन्ध करनेके जिये तय्यार हैं ॥ (२) यदि टिकट द्वारा नहीं चाहते और अन्धाधुन्ध आदमियों की भीड़ करना मंजूर हो तो अपनी जिम्मेवरी पर प्रबन्ध करें प्रार्यसमाजके लोग जहां आप कहेंगे शास्त्रार्थको चले आयेंगे ॥ (३) यदि समाजको जिम्मेवरीपर ही जोर है तो तारीखको ममइयोंके नोहरेमें कानूनी प्रबन्ध द्वारा समाज शास्त्रार्थ कर सकता है ॥ (४) यदि "सर्वदा” .ब्दपर ही आग्रह है तो समाज अभी करनेको तय्यार है। परन्तु हमारे सरावगी भाइयोंने एक न मानी और जय जिनेन्द्र जय जिनेन्द्र आदि शब्दोंसे शोर गुल मचाते हुए समाज भवनसे चले गये ! अब सर्व साधारणको उपरोक्त बातोंसे भली प्रकार प्रकट होगया होगा कि हमारे सरावगी भाइयोंमें सभ्यता कहांतक है॥ मार्यसमाजके सैकड़ों आदमी इनकी सभामें शास्त्रार्थ में शामिल होते रहे, परन्तु कभी ऐसा दुराग्रह नहीं किया, जो नियम उन्होंने रक्खा उसी में हां करदी। क्या हमारे सरावगी भाई इसमें अपने मतको बड़ाई समझते हैं। समझदारोंके नजदीक तो अपनी बड़ी हंसी कराई है। हम तो फिर भी करते हैं कि सभ्यता पूर्वक जहां चाहो वहां शास्त्रार्थ करलो यों असभ्य समु. दायको इकट्ठा कर हल्ला मचाना और अपनी झूठी शेखी बघारना दूसरी. बात है। जयदेव शर्मा मन्त्री मायसमाज, अजमेर _ ता०८-७-१२ । - . सज्जनो! मापने देखा कि आर्यसमाज ने किस प्रकार सर्वसाधारणको धोरमें डालने के अर्थ उपर्युक्त विज्ञापनों में मिथ्या बातें लिखी हैं। -
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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