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________________ समान बादकी साज रिनी निटानेको यहां उपस्थित है। न प्राप्त हुआ तो यह सपना जायेगा कि समालो शाखार्थ करना इष्ट नहीं केवल धमकी देकर के ही पलिकको पोझमें डाल रही है। तो-३-७-१९१२ अजमेर : : घीसूलाल अजमेरा मन्त्री श्रीजनकुमार सभा अजमेर भान सन्ध्याको व्यावरमें सेठ ताराचन्द जी रईस नसीरावादके सभापतित्वमें सभा प्रारम्भ हुई । भाम विज्ञापन वांटे जानेके कारण सभामें खूब भीड़ थी। भजन व मङ्गलाचरण होने के पश्चाद् न्यायाचार्य पंडित मासिक चन्द मी "अनेकान्त पर विद्वचा पूर्व व्याख्यान दुचा। कंबर दिग्विजमसिंहबी ने "जैन धर्मके सौन्दर्य पर प्रभावशाली भाषच किया । वादि गजकेसरी जीने "सम्यकत्व" पर अपूर्व विवेचन कर सर्व साधारणको मुग्ध कर दिया । भजन व मङ्गल होकर जय जयकारयमिसेसमा सानन्द सना. बृहस्पतिवार ४ जुलाई १८१२ ईस्वी। नसीराबादके सेठ ताराचन्द जी, लाला प्यारेलाल जी, सेठ लक्ष्मी चन्द जी और दिगम्बर जैन सभाके सभ्यों और पच्चोंके अनुरोधसे आज सभा मसीरावाद पथारी। .... मार्चसमाजकी ओरसे प्राज निम्न विज्ञापन श्री जैन कुमार सभाके "मामाली ढोलकी पोल और उसको शास्त्रार्थका पुनः चैलेख शीर्षक विज्ञापन के उत्तर में प्रकाशित हुआ। ... ॥ो३म् ॥ .. । सराबगियोंकी नंगी पोल, भीतर तांबा ऊपर झोल। सर्व साधारणको विदित हो कि जैनियोंसे जब हमारे सीधे सच्चे विज्ञापनका कुछ उत्तर न बन पड़ा तो गालियोंपर उतारू होगए हैं और एक विज्ञापन "ढोलकी पोल" नामक निकाला है जिसके शब्द २ से झूठ टपक रहा है. स्वामीजीकी अखण्ड दलीलोंका प्रभाव जैसा विचारशील पुरुषों पर पड़ा, वह उसके भतीजेसे ही प्रकट है शक्ति तो मोक्षके समान और नाम एक्सें वादिगजकेशरी डीक, शांखोंके अंधे और नाम नैनसुख, अपने मुंह नि.
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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