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________________ * वन्दे जिनवरम् ** श्रीजैनतत्व प्रकाशिनी सभाका अठ्ठारहवां दौरा । और शास्त्रार्थ अजमेरका पूर्वरङ्ग । 2 अजमेरमें कुछ दिनोंसे वहांके उत्साही और साक्षर जैन नवयुवकोंने एक श्रीजैन कुमारसभा अजमेर नामक संस्था स्थापित कर रक्खी है और उसके द्वारा वह निज ज्ञान और चरित्र की वृद्धि करते हुए जैन धर्म की सच्ची प्रभावना कर स्वपर कल्याण करनेका सदैव उद्योग किया करते हैं । विशेषतः अङ्गरेजी शिक्षा प्राप्त या प्राप्त करने वाले नवयुवकोंको काम करनेका बड़ा उत्साह हुआ करता है और जहां कहीं वे काम होता हुआ देखते हैं उस में जाकर सम्मिलित हो जाते हैं। वर्तमान में कालदोष तथा अन्य भी कई का रणोंसे इमारा जैनसमाज अपने सत्यधर्म के प्रचार करनेके उद्योग और तद्द्वारा संसारको लाभ पहुंचाने के कार्य में बहुत पिछना हुआ है, अतः जैमसमाजके होनहार और साक्षर नवयुवकों में से बहुत से जैन समाज में कुछ काम होता हुआ न देखकर उससे उदासीन हो जाते हैं और उन आर्यसमाजादि संस्थाओं में ( जो कि प्रचार आदिके करने के अर्थ प्रसिद्ध हैं जैसा कि उनकी कार्यप्रणाली व नित्यप्रति वृद्धिंगत होती हुई संख्या से किसीको शम्रगट नहीं हैं ) जाकर सम्मिलित हो काम करने लगते हैं । इसी नियम के अनुसार श्री जैन कुमारसभा अजमेर के कई होनहार व शिक्षा प्राप्त करने वाले सभासद ( विशेष कर उसके कार्यपरायण और धर्मप्रचारका बड़ा उत्साह रखने वाले सुयोग्य मन्त्री बाबू घीसूलालजी अजमेरा ) अजमेर की आार्यकुमार सभा में जाकर सम्मिलित हो गये थे और वहां पर उन्होंने अच्छा काम किया । इटावह में श्रीजैन त प्रकाशिनी सभाकी स्थापना और उसको स्थान स्थानपर जाकर व्याख्यान लेख तथा शङ्कासमाधानादि द्वारा जैनधर्मके प्रचार करनेके कार्यको देखकर तथा उसके प्रकाशित श्रार्यमतली लादि ट्रैक्टोंको पढ़कर अन्य अनेकोंके साथ हमारे इन अजमेर के नवयुवकों को भी बोध हुआ और उन्होंने भलीभांति जान लिया कि यद्यपि शार्यसमाज प्रत्यक्षमें शारीरिक सामाजिक और नैतिक - छति में जैनसमाजसे बहुत चढ़ा बढ़ा प्रतीत होता है परन्तु उसमें श्रात्मा के यथार्थ कल्याण करने वाली प्रात्मिक उन्नति विल्कुल नहीं है जिससे कि वह
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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