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________________ आर्य समाज की ओरसे प्रकाशित पंडित दुर्गादत्त जी के उपर्युक्त विद्या पनका सभाकी और से निम्न विज्ञापन द्वारा उत्तर दिया गया। .. वन्दे जिनधरम्॥ ... मानकी मरम्मत। सर्व साधारण सज्जन महोदयोंको यह प्रगठ करने की कोई मावश्यकता नहीं है कि कल जो शाखार्थ जैन और आर्य समाज में श्रीमान् स्याद्वाद वारिधि वादि गज केसरी पं० गोपालदासजी बरैया और स्वामी दर्शनानन्द जी सरस्वती महाराज हुमा था उममें तीन घन्टे विषयसे विषयान्तर होते हुए स्वामीजी महाराज ईश्वरकी स्वाभाविक क्रियामें सृष्टि कर्तृत्व और प्रलय कर्तृत्व मिद्ध न करमके पर भार्यसमाजको किसी प्रकार अपने टूटे हुए मान की मरम्मत करना नष्ट थी इस कारण उसने पं० दुर्गादत्तजी शर्मा ( जिनका कि प्रदान कुछ समयसे आर्यसमाजसे विचलित होकर जैन धर्मपर प्राता हुआ मालूम होता था) को किसी प्रकारका आश्वासन देकर पुनः आर्यसमाजी बनानेकी चेष्टा करके अपने मानकी मरम्मत की है पर समाजको विश्वाम रखना चाहिये कि इस प्रकारको कार्रवाइयोंसे उसके मानकी मरम्मत कदापि नहीं हो सकती यदि यथार्थ में पंडित दुर्गादत्तजीको दोपहरके शास्त्रार्थके बाद ही जैनधर्मपर शंकायें होगई थीं तो उन्होंने रात्रिके निज व्याख्यानमें वेदों की पोल क्यों खोली और क्यों यह कहा कि मैं वेदोंकी पोल कहां तक दि. खलाऊ उसमें तो निरी पोल ही पोल भरी है यथार्थ में यदि पंडित दुर्गादत्त जी को जैन धर्मपर शंकायें होगई हैं तो हम उनको उनके कल्यासार्थ पुनः जैनधर्मपर निज समस्त शंकाओंके समाधान और वेदोंके महत्त्व सिद्ध करनेका मौका देते हैं यदि और कोई बात हो तो आप खुशी से मार्यसमाज में सम्मिलित हुजिये पर साथ ही विश्वास रखिये कि इस प्रकारको कारर्वा. इयोंसे जैन मतका कुछ भी नहीं बिगड़ता क्योंकि उसके सिद्धान्त नितान्त सत्य और अटल हैं। प्रार्थी-घीसूलाल अजमेरा मंत्री श्री जैन कुमार सभा अजमेर ता० १ जुलाई १९१२ -::सन्ध्याको सभाका अधिवेशन पुनः प्रारम्भ हुमा रात्रिको वादि गजके. | सरीजीके व्याख्यानका नोटिस होनेसे बड़ी भीड़ थी और अन्य पुरुषोंके
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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