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________________ उपसंहार। इन दोनों शोस्त्राओं को पढ़कर कहीं कोई ऐमा अनुमान न लग जैन लोग ईश्वरको नहीं मानते अतः ईश्वर का स्वरूप सर्व साधारणा नार्थ प्रकाशित किया जाता है। कर्म मल रहित शद्ध जीवनमुक्त या मुक्त जीवको ही ईश्वर कहते में कि क्षधा, तृषा, भय, जन्म, जरा, मृत्यु, रोग, शोक, गति, अरति, सि.. खेद, स्वेद, मद, निद्रा, रागढूष और मोह ये अठारह दूषणा नहीं है । यथोक्तंच; त्रैलोक्यं सकलं निकालविषयं सालोकमालोकितं। साक्षाद्येन यथा स्वयं करतले रेखात्रयं मांगुलि ॥ रागद्वषभयामयान्त कजरालोलत्वलोभादयो। नालं यत्पदलंघनाय स महादेबो मया वन्द्यते ॥ या जो अब ऐसा विशिष्ट प्रात्मा होगया है कि जो: न द्वषी है न रागी है मदानन्द वीतरागी है। वह सब विषयोंका त्यागी है जो ईश्वर है सो ऐसा है ॥ टेक ॥ न खद घटघटमें जाता है मगर घटघट का ज्ञाता है। यह सब बातों का ज्ञाता है जो ईश्वर है सो ऐसा है॥१॥ न करता है न हरता है नहीं औतार धरता है। मारता है न मरता है जो ईश्वर है सो ऐसा है ॥२॥ ज्ञानके नासे पुरनर है जिमका नहीं सानी । सरासर नर नरानी जो ईश्वर है सो ऐना है ॥३॥ न क्रोधी है नकामी है न दुश्मन है न हामी है। वह सारे जगका स्वामी है जो ईश्वर है सो ऐसा है ॥४। वह जाते पाक है दुनियांके झगड़ोंसे मुवर्य है। प्रालिमुलगैव है वे ऐव ईश्वर है सो ऐसा है ॥५॥ दयामय है शान्ति रस है परमवैराग्य मुद्रा है। न जाबिर है न काहिर है जो ईश्वर है सो ऐसा है ॥६॥ निरंजन निर्विकारी है निजानन्द रस विहारी है। सदा कल्याणकारी है जो ईश्वर है सो ऐसा है॥७॥ न जग जंजाल रचता है करम फलका न दाता है। वह सब बातोंका ज्ञाता है जो ईश्वर है सो ऐसा है ॥ ८॥ वह सच्चिदानन्द रूपी है ज्ञानमय शिव स्वरूपी है। आप कल्याणरूपी है जो ईश्वर है सो ऐसा है ॥९॥ जिस ईश्वर के ध्यानसेती बने ईश्वर कहै न्यामत । वही ईश्वर हमारा है जो ईश्वर है सो ऐसा है ॥१०॥ या संक्षेप में यों कहिये कि वह सर्वज्ञत्वेमति बीतराग अर्थात् ज्ञाता दृष्टा है। अन्तमें हमको पूर्ण आशा यथा दृढ़ विश्वास है कि सर्वसाधारया इस प्रकार ईश्वरके यथार्थ स्वरूपका श्रद्धानकर सदैव स्व पर कल्याण कर सकने में समर्थ होंगे। चन्द्रसेन जैन वैद्य मन्त्री श्री जैन तत्त्व प्रकाशिनी सपा, इटावह ।
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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