SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अखंड । गु० ॥ १२ ॥ धन धन देवगुरु महाराजा। पायो सुर पुर तीज अनन्द । गु० ॥ १३ ॥ करण कहे सुभ आशा पुरो । द्यो गुरु समकितानन्द ॥ गु० ॥ १४ ॥.. काव्यम् सदाम्रजम्बूमोचकैः । श्रियः फलै विभूषितम् सुखर्जुरी-सुकर्कटी-फलोधमर्पयामि ते ॥ १ ॥ ॐ ह्री श्री .... फलं. निर्वपामि ते । स्वाहा. इति अष्टमी फलपूजा समाप्ता. अथ नवमवस्त्रपूजाप्रारम्भः दूहा. केसवगन्ध संयुक्त सें । उज्ज्वल वस्त्र अनुप चाढे सद्गुरु चरणपे । भाजे व्यथा स्वरुप. ॥१॥ ढाल नवमी. . कव्वाली रागण गीयते. धन धन सद्गुरु हे महाराज । अनुभव ज्ञान जचाने वाले। नव लख सूरि मंत्रको जाप। जपकर सूरि भये हैं आप । नामसें भाजे कुष्ट : संताप । आगम पन्थ बताने वाले ॥ धन०॥१॥ गुर्जर देश
SR No.032023
Book TitleBruhat Puja Aur Laghu Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvandas Amarchand Salot
PublisherJograjji Chandmallji Vaid
Publication Year1916
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy