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________________ सिद्धगिरिपर डेढ मासकी। संलेखनाकर सुख पाया हो ॥ भव० ॥ १६ ॥ वरस चोरासी चरमप्रभुसें। माघसुदि सुख पाया हो ॥ भव० ॥ १७ ॥ उपजा द्वादशमें देवलोके । पूर्णा तीथि गुरुराया हो। भव० ॥ १८॥ तीजी पूजा विकसकुसुमकी। पूजन कर सुख पाया हो ॥ भव० ॥ १९ ॥ करन कहे मम पातिक भाजे । चरन शरन शुभ आया हो ॥ ॥ भव० ॥ २०॥ काव्यम्. मालती पाटलीं चैव केतकीसङ्गतोद्भवां । विकासामोदकुसुम-सन्तति निर्वपामि ते॥१॥ न ही श्री........पुष्पं निर्वपामि ते स्वाहा इति तृतीया पुष्पपूजा समाप्ता. अथ-चतुर्थधूपपूजाप्रारम्भः दहा. कृष्णागर मृगमद तगर। सेलारस लोंबान । जो खेवै गुरुचरनपे । वो लहे सुरपुरस्थान ॥१॥ ' ढाल चौथी. सिद्धचक्रपद वन्दो । ए देशी। राग आशावरी रागण गीयते. सद्गुरुपद नित वंदोरे भविका । चर्चित होत
SR No.032023
Book TitleBruhat Puja Aur Laghu Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvandas Amarchand Salot
PublisherJograjji Chandmallji Vaid
Publication Year1916
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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