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________________ ५० निर्णय - चर्चापत्र, ED [ निर्णय - चर्चापत्र. - ] (जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा - विद्यासागर - न्यायरत्नमहाराज - शांतिविजयजी तर्फसे, ) १ - कलमपहेली, - जैनशास्त्रोंमें जैनमुनि - जैनसाधवी - श्रावकऔर-श्राविकाको जोजो धर्मक्रिया करना तीर्थकरगणधरोने फरमाया, उसकावयान यहां दिया जाता है, - चोथेआरके मनुष्य बडेताकात वाले और आला दर्जे की तकदीरवालेथे, इसलिये वे - उत्सर्गमार्गपर ज्यादहचलतेथे, - पांचवे आरके मनुष्य कमताकातवाले रहगये, इसलिये अपवादमार्ग - यानी - शिथिलमार्गपर ज्यादहचलते है, उत्सर्गमार्गका नाम कठिनमार्ग - कहदो, और अपवादमार्गका नाम शिथिलमार्ग कहदो, दोनोके पर्याय नाम है, - जैनके पंचमहाव्रतधारी उत्कृष्टक्रियाबान - जैन साधु - या -- साध्वीकों - विहारमें - यानी - रास्तेमें किसीकी सहायता नही लेना चाहिये, असहायक होकर विहारकरना कहा, और जोकुछ तकलीफ आनपडे सहन करना, - मगर - नाराजनही होना, - अगर कोइ जैन मुनि - समेतशिखरजी वगेरा - जैनतीर्थो की जियारत जाते वख्त - या - बनारस जैन पाठशालामें विद्यापढने के लिये- जातेसमयया - मुल्कमारवाड - मेवाड - सिंध - पंजाब - राजपुताना -- बंगाल -- मध्यप्रदेश- वराड-खानदेश- या - दखन हैदराबाद तर्फ - विहारकरतेवरूनश्रावक श्राविका - या - नोकरचाकर शाथचले, उनश्रावकश्राविकाऔर- नोकरचाकरोकेलिये बैलगाडीभी शाथरहे, जैनमुनि - जानते हो - बेकि-ये- सबलोग हमारेविहारकेसवव शाथचले है, और सहायता लेवे, - तो यहबात मुताबिक जैनशास्त्र के ठीकसमजना - या - कैसे, ? इसपर अगर कोइ कहे कि - जमाना पहले जैसा नहीरहा, शरीरकी ताकात कमहोगई, इसलिये जमानेहालमें - जैनमुनिकों इरादेधर्मके-या-तीर्थ
SR No.032022
Book TitleKitab Charcha Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherDolatram Khubchand Sakin
Publication Year1917
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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