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________________ ३८ Pears. संवत् ( १९३६ ) की सालमें मुल्कपंजाब में दीक्षा इख्तियार कि वीवर्सतक पैदलविहार करते रहे, संवत् ( १९५६ ) की - साल में जब तीर्थ समेतशिखरकी जियारतको गये, शहर लखनउसे रैलमें बेठकर सफर करना शुरु किया, और किताब - जैनतीर्थगाइड बनाइ, जब पैदलविहारकरतेथे तभी जैन श्वेतांवरसंघ में उनकी वही भक्ति होतीथी, और अभी वैसीही होरही है, -कहिये ! शांतिविजयजी कों मुनिपने खानपान - पात्र - या -जकानके मिलतेमे-या-सेवाभक्तिमें किसकी कमी है. ? जोजो जैनमुनि निस्पृही - सत्यवक्ता - और अपने पूर्वसंचितकर्मपर भसा रखनेवाले है, उनकों हमेशां योग्य चीज मिलती रहती है, - [ दरवान विद्यासागर न्यायरत्न पदवी, ] ८ – फिर जेसिंग - सांकल बंद इसदलिलकों पेंशकरते है, पोते विद्यासागर - न्यावरन लखेछे, पण एपदवी कोणेआपीछे, एजो खुलासोकरशे, मारा धारामागे तो कोईये पण आपलनथी, छतां कोई आपनार तेनो खुलासा करशे तो सारीवात थशे, ( जवाब . ) में - खुद खुलासाकरताहुं, सुनिये ! विद्यासागर न्यारत्नपदवी शहर - रतलाम के जैन श्वेतांवरसंघ संवत् (१९५४) मे fare और उसका बयान शहर - अहमदाबाद - मासिकपत्र जैनदिवाकरके पुस्तक (१४) अंक ( ५ ) तथा ( ६ ) मार्च - एप्रिल - सन (१८९९) के अंक में छपा है, मंगवाकर देखलो ! और अपना शक रफा करलो ! जब मजकुरपदवी दिली - उसवरूत एक मानपत्र भी दि याथा, वोभी उपरबतलाये हुवे जैनदिवाकर मासिकपत्र छपा है, साचको आंच नही. और दुनियामें सत्य कभी छिपतानही, ९ – आगे जेसिंग सांकलचंद इसमजमूनकों पेंशकरते है, हुं -----
SR No.032022
Book TitleKitab Charcha Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherDolatram Khubchand Sakin
Publication Year1917
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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