________________
दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाष. १९ तरह-शांतिविजयजीभी-दोदफे बदलतेहै, रंगबेरंगीदुशाले और रेशमीरुमालरखनेका जवाबमुनिये! पीलेकपडे रखनाअह एकतरहका रंगहुवा, एकसरहनारंग मंजुरहुवा-तो-दुसरीतरहकारंग-रखनेसे चारित्रधर्म : चलानहीजाता, जैनमुनिकों जरीकाकपडा-रखनामनाहै,-सो-शांतिविजयनी-जरीकेकपडे नहीरखते, फिरऊनको कोइक्याठपका देसकतेहै,? ____२८-फिर दलिचंद सुखराज बयानकरते है, रुइकीगादी बीछा.. करसोना-मुगंधीतेललगाना, गृहस्थसे आहारमंगाना, इनमें रोगादि-: कारणबतलाया,-तो-शांतिविजयजीके शरीरमें औसाकौनसा रोगहै ? ... (जवाब.) रोगादिकारणहोना-शरीरकाधर्म है, तीर्थकर महावीरस्वामीके शरीरमें केवलज्ञानकी हालतमेंभी रोगपैदाहुवाथा-तो-दुसरे .. जैनमुनिके शरीरमें रोगपैदाहोना कौनताज्जुकीबातहै ? शांतिविजयजीके मस्तकों और नेत्ररोगहै-जभीतो-चश्मे-लगाते है, और सुगंधीतेल इस्तिमालकरतेहै,-रोगादिकारणसे जैनमुनिको-शतपाक-सहस्रपाकऔर-लक्षपाकतेललगाना हुकमहै, रोगादिकारणसे जैनमुनिकों घासबीछाकरसोनाहुकमहै, घासपरकंबल-और-कंबलपर-रुड़काकपडा बिछायाजाताहै, गृहस्थसे आहारमंगवाकरखानेका जबावसुनिये ! कभी रोगादिकारणहोजायतो जैनमुनिकों गृहस्थसे आहारमंगवाकरखानेकाभी हुकमहै, इसमेंबातक्याथी,? ....
२९-मेनेजो-सूत्रआवश्यकका पाठदेकर लिखाथाकि-एकजैनमुनिके शरीरमें रोगथा, उसहालतमें-एक-जीवानंदजीनामके वैद्यने उसनैनमुनिके शरीरपर लक्षपाकतेल मर्दनकियाथा, गोशीर्षचंदन लक: गायाथा, और रत्रकंबल ओढायाथा, इसपर दलिचंद सुखरान लि... वते है-देखिये ! महाव्याधिहोनेपरभी-उसआत्मार्थी साधुने अपना : उपाव शांतिविजयजीकी तरह बीचमें इरादा धर्मकालाकर नहीं किपा-और-न-किसीसे कहकर करवाया..