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________________ " मुनि सम्मेलनपर मेरी सम्मति." (लेखक-वीरपुत्र-आनंदसागर.) मुंबई-हिन्दीजैन-ता. १८ जौलाई १९१२. गजरात देशमें बडौदा नामक अति मनोहर शहर है वहांपर कितनेक समयसे श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वर ( आत्मारामजी ) महाराजके पटधर श्रीमद्विजय कमल. सूरिजी महाराज विराजमान हैं, तथा आपके आज्ञानुसारी सर्व मुनि महाराजभी अपूर्व लाभके कारण एकत्रित हुएथे. मैं यही विचारताथा कि, इस मुनि मंडलीके सम्मेलनसे कोई अपूर्व लाभ अवश्यही प्राप्त होगा. आहा ! मेरा वह शुभ विचार हिंदीजैन अंक नं. ४३ के पृष्ट नंबर ७ ने पुर्ण कर दीया ! आप सुज्ञ मुनिवरोंने अपने कर्तव्योंको उच्च श्रेणीपर लानेको अत्यंत अनुमोदनीय २४ प्रस्ताव पास किये. यदि मैं एक एक प्रस्तावकी व्याख्या करूं तो बेशक एक छोटा ग्रंथ बन सकता है ! मगर समय कम होनेसे केवल हार्दिक धन्यवाद के साथ प्रार्थनारूप थोडेसे शब्द लिखनेका प्रयत्न करूंगा. वर्तमान जमानेकी हालत देखते यह प्रस्ताव स्वर्णमय अक्षरोंसे लिखने योग्य हैं ! मैं हरएक संघाडे पतिसे प्रार्थना करता हूं कि इस संमेलनका अनुकरण करके सर्व त्रुटियोंको निकाल कर उत्तम क्रियामें प्रवृत्त होवें ताके वीर लिंगका सत्कार बढ़े तथा आत्म सुधार हो !
SR No.032021
Book TitleMuni Sammelan 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sacheti
Publication Year1912
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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