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________________ 66 २६ द्वितीयाधिवेशन "" बराबर दो बजे सभापति श्रीआचार्य महाराजजी मुनिमंडल सहित आबिराजे श्रावक श्राविका वा अन्य प्रेक्षक गणोंसे स्थान उसी प्रकार भर गया. सभापतिजीकी आज्ञासे मंगलाचरणपूर्वक कार्य प्रारंभ किया गया. प्रस्ताव तेरवां. ( १३ ) साधुके आचार विचार में किसी प्रकारकी हानि न आवे इस रीतिपर अपने साधुओंको जैनोंसे अतिरिक्त अन्य लोगोभी जाहिर व्याख्यानद्वारा लाभ देनेका रीवाज रखना चाहिये, तथा और किसीका व्याख्यान पबलिकमें जाहिर त रीके होता हो तो उसमें भी, द्रव्यक्षेत्र कालभावको देखकर साधुको जानेके लिये छूट होनी चाहिये. हां इतना जरूर होवे fa, हर दो कार्य में रत्नाधिक ( बड़े ) की आज्ञाविना प्रयत्न न किया जावे. म निराज श्रीवल्लभविजयजीने इस नियमको पेश कऔरते हुए विवेचन किया कि, महाशयो ! यह नियम जो मैनें आप साहिबोंके समक्ष पेश किया है जमाने के लिहाजसे वह बडेही महत्वका और धर्मको फायदा पहुंचानेवाला है. जैनेतर लोगों में जैनधर्मके तत्वों का प्रचार करनेका
SR No.032021
Book TitleMuni Sammelan 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sacheti
Publication Year1912
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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