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________________ करनेकी पूरी आवश्यकता है इस नियमके पास होनेसे, कई प्रकारके फायदे हैं प्रथम तो, यही बडा लाभ होगा कि, साधुओंकी स्वच्छंदता बढनी बंद हो जावेगी नहीं तो, आपसमें अर्थात् गुरु शिष्योंमें या गुरुभाई आदिमें छदमस्थ होनेसे, साधारणभी बोलाचाली या खटपट हो गई हो, तो झट दूसरे साधुके पास जानेके इरादेसे यह जानके कि, क्या है ? यहां नहीं मन मिला तो दूसरेके पास जा रहेंगे झट समुदायसे पैर बाहर रखनेकी, मरजी हो जायगी और जब ऐसा होगा तो विनयादि गुण, जो खास मुनिके भूषणरूप हैं उनका नाश होगा. यह तो, आप अच्छी तरह जानते हैं कि आजकलके साधारण जीवोंमें कितना वैराग्य और विरक्त भाव है. इस लिये इस नियमके करनेसे स्वछंदताका कारण नष्ट होगा क्यों कि, जब कोई नाराज हो कर दूसरे साधुके पास जानेका इरादा करेगा. तो वह पहले इस बातको अवश्य विचार लेगा कि, मैं दूसरेके पास जातातो हूं परंतु, आचार्य महाराजकी आज्ञा बगैर तो अन्य रखेंगेंही नहीं और जब आचार्यश्रीकी आज्ञा मंगाऊंगा तो सारा वृत्तांतही प्रगट हो जायेगा. फिरतो, जैसी आचार्यजीकी मरजी होगी तदनुसार बनेगा इत्यादि विचार स्वयं ठिकाने आ जावेगा और ऐसा होनेसे वो गुण प्रगट होगा कि जिस गुणके प्रभावसे साधुमें सहनशीलता परस्पर प्रीतिभाव ( संप ) की वृद्धि होगी. अतः इस नियमको पास करनेके लिये जोरके साथ मैं मुनिमंडलके ध्यानको आकर्षित करता हूं.
SR No.032021
Book TitleMuni Sammelan 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sacheti
Publication Year1912
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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