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________________ चाहिये ! किंतु अच्छी तरह न्यायशास्त्रादि तत्वज्ञानका पूरा अभ्यास करना चाहिये. यह खूब ध्यानमें रखना ! कि उंचे प्रकारके विद्याध्ययनके विना साधुओंका महत्व टिके, ऐसा समय अब नहीं रहा ! इस लिये जैनसमुदायमें विद्याकी वृद्धि हो, ऐसे प्रयत्नकी बहुत जरूरत है. जब ऐसा होगा तबही समुदाय, समाज और आत्माकी उन्नति होगी. शास्त्रोंमेंभी “ पढम णाणं तओ दया" " ज्ञानादृते न मुक्तिः" इत्यादि फरमान है. ___अपनेमें अर्थात् श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजीके शिष्य समुदायमें देशकालानुसार प्रायः आचार संबंधी शिथिलता नहीं है. तो भी, भविष्यके लिये समयानुसार कितनेक नियम करनेकी आवश्यकता मालूम देती है. भिन्न भिन्न संप्रदायके साधुओंकी पृथक पृथक प्रवृत्ति देखकर भय है कि, अपने साधुओंमें भी संगत दोष न लग जाय, इस लिये भी कितनेक नियम करनेकी जरूरत है. कितनेक अन्य साधु विहारमें अपने उपकरण आदि गृहस्थोंसे उठवा कर चलते हैं, कपडे ग्रहस्थसे धुलवाते हैं, और केशलंचन ( रोगादि कारणके अतिरिक्त ) भी बहुतसे साधु छोड बैठे हैं. तथा कितनेक साधु गुरुआदि वृद्ध पुरुषोंसे, गुप्त पत्रव्यवहार आदि करते हैं इत्यादि कितनीक बातें ऐसी हैं जो. उनके लिये कुछ बंदोवस्त न किया जाय तो किसी समय हानिकारक परिणाम आनेका संभव है. कितनेक साधु देशकालका विचार किये विना शिष्य परिवार बढानेकी लालचमें फसकर ऐसे ऐसे कार्य करते हैं,
SR No.032021
Book TitleMuni Sammelan 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sacheti
Publication Year1912
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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