SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाहिर उदघोषणा ने० ३. चौथमलजी आदिकी तरफसे उपरमें बतलाई हुई किताबों मे हमेशा मंहपत्ति बांधनेका ठहराने के लिये कुयक्तियों करके झंठे २ शास्त्रों के नाम लिखकर भोले लोगोंको भ्रममें न डाले जाते और न बांधनेवाले संवेगी साधुओंके उपर बहुत अनुचित आक्षेपोंकी वर्षा न होती तो मेरको यह ग्रंथ बनानेका कोई कारण नहींथा इसलिये इस ग्रंथके बनानेमें मूल कारण भूत चौथमलजी आदि को ही समझना चाहिये। १२०. कितनेक ढूंढिये कहते हैं कि हम वाद विवादका झगड़ा नहीं चाहते तुम तुमारी करो हम हमारी करें हमतो संप चाहतेहै, यह कथन मध्यस्थ भावका नहींहै किंतु मायाचारीका है, यदि सरल हृदयसे शुद्धभावहो तो हमेशा मुंहपत्ति बांधने वगैरहकी झूठी बातोका अवश्य त्याग करें, जबतक झूठी बातोंका आग्रह त्याग न करें तबतक संप चाहनेवालोंका मध्यस्थ भाव कमी नहीं होसकता,यहतोभोले जीवोंको बहकाकर भले बननेकी बहाने बाजीहै । इसलिये ऐसी माया प्रपंचकी बातें छोडकर जिसतरह श्रीबुंटेरायजी, आत्मारामजी, मूलचंदजी, वृद्धि चंदजी आदि सैकड़ों साधु साध्वियोंने और हजारों श्रावक-श्राविकाओने मुंहपत्ति बांधनेके झूठे मतको त्याग किया है। उसीतरह आत्मार्थी सब ढूंढिये-तेरहापंथियोंकोभी करना उचितहै परंतु लोकलज्जासे खोटी अंधरूढिको चलाना योग्य नहीं है। ॥ इति शुभं॥ श्रीवीरनिर्वाण २४५२, विक्रमसंवत् १९८३ कार्तिक शुदी ११. हस्ताक्षर श्रीमन्महोपाध्यायजीश्री १००८ श्री सुमात सागरजी महाराजके चरण सेवक पं० मुनि-मणिसागर-जैन धर्मशाला, राजपूताना, कोटा. आगमानुसार मुंहपत्ति का निर्णय तथा जाहिर उद्घोषणा नम्बर १२-३ तथा ४-५-६ और श्रीजिनप्रतिमा को वंदन-पूजन करनेकी अनादि सिद्धि प्रादि ग्रंथ भेट मिलने के ठिकाने: १. श्री महावीर जैन लायब्रेरी, राजपूताना, कोटा. २. श्रीजिनदत्तसूरिजी ज्ञानभंडार, ठि• गोपीपुरा, शीतलवाडी, गुजरात, सूरत. ३. श्रीजिनकृपा चन्द्रसूरिजी जैन ज्ञान भंडार, ठि० मोरसलीगली, मालवा इन्दौर. ४. श्रीआत्मानंद जन पुस्तकप्रचारकमंडल, ठि० रोशनमुहल्ला, यू० पी० आगरा. ५. श्रीआत्मानंद जैन ट्रेक्ट सोसायटी, पंजाब, अंबाला शहर. ६. श्रीआत्मानंद जैन सभा, काठियावाड, भावनगर. ७. श्री जिन चारित्र सरिजी, बडा उपाश्रय, मारवाड, बीकानेर. ०
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy