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________________ ८४ जाहिर उद्घोषणा नं० ३. तथा आत्माकी विराधना होती है ऐसे समय में भी दंडा संयम - शरीर की रक्षा करता है । ५-विहार कर दूसरे गांव जाते समय रास्तामें भूखसे या तृषासे साधु या साध्वी चलने में अशक्त होगये हों या चक्र आने लगते हों ऐसे समय वहां पर गांव पहुँचने के लिये दंडा बडा सहायक होता है । ६- रास्तामें नदी-नाले आदिमें जल होवे और नीचे की भूमि दे. खने नहीं आती हो तो दंडासे पहिले जलका माप करके पीछे उतरा जाता है परंतु दंडाके अभाव में थोडे जलके भरोसे उतरने पर अधिक उंडा जल आजावे या कीचडमें पैर फँस जावे या चीकनी मट्टी में फीसल जावे तो वहां पर बडी आफत आती है और यदि गिरजावे तो अनतजीवोंकी हानि व पुस्तक आदिका नुकसान होता है ऐसे समय में भी दंडा बडी सहायता देकर सबका बचाव करता है । ७- कभी थोडी देर के लिये बहुत जल वाली नदी उतरते समय नामें बैठना पडे तो नावमें चढते और उतरते समय दंडाका सहारा होता है अन्यथा कभी गिर जावें तो शरीर-संयम की हानि व लोगों में हंसीका हेतु बने' इसलिये दंड | बडा काम देता है । ८ - वर्षा चौमासा में आहार- पानी वगैरह को जाते समय रास्ता - में कीचड में पैर न फसलने पावे इसलिये दंडा बडी सहायता देता है ९ - रास्त ( मैं चलते समय काटने वाले कुत्ते या सिंगडे मारने वा ले गऊ- भैंस वगैरह से भी दंडा बचाव करता है । यद्यपि दंडासे साधु कुते आदिको मारते नहीं किंतु लकडी देखकर स्वभावसेही वह पशु दूर रहते हैं साधुके नजदीक नहीं आते और ढूंढिये साधु को कभी कुत्ते भौंकते हुये काटनेको पासमें आते हैं तब उसका बचाव करने के लिये ढूंढिये साधु अपने ओघेको कुत्ते के मुंहके सामने हिलाते हैं उससे वायु कायकी विशेष हिंसा होती है तथा कुत्ता विशेष चिडता हुआ क्रोधसे खूब भौंकता है और कभी ओघेको मुंहमें पकडभी लेता है, बडा कौतुक बनता है ऐसे समय हाथमें दंडा होतो ओघेकी ऐसी विटंबना करनेका समय कभी न आवे, वहां भी शरीर संयमका बचाव दंडा करता है । १०- हाथ में दंडा होनेसे उपर मुजब विहार समय जंगल में कभी चौर या हिंसक प्राणी से भी बचाव होता है ।
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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