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________________ ___ जाहिर उद्घोषणा नं०.३. . वए सेसं तंचेव जाव परिदृवियव्वे सिया एवं जाव दसहि पडिग्गहहिं। एवं जहा पडिग्गह वत्तवव्वया भणिया, एवं गोच्छग रयहरण चोलप. दृग कंबल लट्ठी संस्थारग वत्तव्वयाभाणियव्वा जाव दसहि संस्थारएहिं उवनिमंतेजा जाव परिवियव्वे सिया ॥ ६॥" __ ९४. अर्थः- " गृहस्थके वहां पात्र निमित्त गयेहुये साधुको कोई दो पात्रकी निमंत्रणा करे और कहे कि अहो आयुष्मन् ! इसमें से एकपात्र तुम रखना और दूसरा पात्र स्थविरको देना फिर उस पात्रको लेकर जहां स्थविर होवे वहां साधुको जाना गवेषणा करते हुए कदा. चित स्थविर नहीं मिले तो वो पत्रा स्वतः को रखना नहीं, वैसेही अन्य को देना नहीं, परंतु एकांतमें जाकर परिठना. जैसे दो पात्रका कहा वै. सेही तीन चार यावत् दश पात्रका जानना और जैसे पात्रका कहाहै वैसेही गोच्छक, रजोहरण, चोलपट्टक, कंबल, यष्टि, व संस्थाराकी वक्तव्यता दशतक कहना ॥६॥" ९५. देखो- ऊपरके मूलपाठ और अर्थपर विवेक बुद्धिसे विचार करना चाहिये कि जिसप्रकार पात्र,गुच्छा, रजोहरण, चौलपट्टक, कंबल आदि उपकरणोंको साधु गृहस्थोंके घरसे यावत् दश दश तक लेकर उनमेंसे एक एक अपनेलिये रक्ख और बाकीके नव २ अन्य साधुओंको दे. यह उपकरण लानेकी रीतिहै । उसी प्रकार यष्टि दंडा व संस्थाराभी दश दश तक लेकर दूसरे साधुओको देनेकी सूत्रकी आशाहै, इसीसे अ. च्छी तरह सिद्धहोताहै कि सब साधुओंको रजोहरण, कंशल, संस्था आदिकी तरह दंडा भी खास उपयोगी वस्तु होनेसे ऊपरके आगम पा. ठकी आज्ञा मुजब अवश्यही रखना चाहिये । जिसपरभी ढूंढिये साधु रखते नहीं और संवेगी रखतेहैं उसका निषेध करतेहैं, यहतो प्रत्यक्षही सूत्रकी आज्ञा विरुद्ध होकर उत्सूत्र प्ररूपणासे बड़ा अनर्थ करते हैं। . ९६. ढूंढियोंका छपवाया निशीथ सूत्रका प्रथम उद्देश पृष्ठ ८ में ऐसा पाठ है: "जे भिक्खू दंडय वा, लटियं वा अवलेहणियं वा, वेणुसूई वा अणउत्थिएण वा गारथीएण वा, परिघट्टावेई सोचवमगिलओ गमओ अणुगंतव्वो जाव साइजाई ॥” . ___ ९७. अर्थः- “जो साधु दंडा[धनुष्य प्रमाण ] लाठी [ शरीर प्रमाण ], कर्दम फेरनी (चौमासे आदिमें कर्दमसे पांव भरावे उसे पू.
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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