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________________ • जाहिर उद्घोषणा नं० ३. ७३ ८३. ढूंढिये अपनेको साधुमार्गी कहतेहैं, यहभी सर्वथा अनुचितहै, जैनशासनमें सर्वज्ञ भगवान् तीर्थनायक जिनेश्वर महाराजके नामसे सर्वज्ञ शासन, जैनमार्ग, अर्हत् प्रवचन आदि नाम प्रसिद्ध हैं। जिनेश्वर भगवानरूप महाराजाके आचार्य-उपाध्यायरूप मंत्री (दीवान) कोटवालके हाथके नीचे साधुपद तो एक छोटे सीपाई समान है। जिसतरह राजा महाराजाके नामकी मर्यादा उठाकर अपने नामकी मर्या दा चलाने वाला सीपाई गुन्हगार होताहै। उसी तरह जिनेश्वर भगवान्के सर्वक्षमार्ग-अईत्मार्ग आदि नामोंके बदले ढूंढियेलोग सा. धुमार्गी नाम चलातेहैं, इस से साधुमार्गी नाम चलाने वाले सब ढूंढिये जिनेश्वर भगवान्की आज्ञा उत्थापन करनेके गुन्हगार बनतेहैं। ८४. फिरभी देखिये आवश्यक, उववाई आदि आगमोंमें "नि. ग्रंथ प्रवचन" नाम आयाहै यहभी तीर्थकर भगवानके उपदेश दियेहुये और गणधर महाराजोंके रचहुए द्वादशांगीका नामहै, उससे निग्रंथ प्रवचन यहनाम तीर्थकर-गणधरोका कहाजाताहै. जिससे जैनसमाजमें जितने साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाएं होतेहैं वहसष जिनेश्वर भग. वान के उपदेश दियेहुए मार्गके अनुसार चलने वाले होनेसे जैनी कह. लातेहैं इसलिये तीर्थकर-गणधर महाराजों के नाम चलानेके बदले ढूंढिये लोग अपना नाम बढाने के लिये साधुमार्गी नाम चलातेहैं इससे तीर्थकर भगवान्की आशातना करनेके दोषी बनते हैं। ८५. इंढियेअपनामूलनाम लुकागच्छ कहतेहैं यहभी जिनाबाविरुद्धहै, जैनशासनमें गणधर पूर्वधरादि प्रभावकआचार्यके नामसे गच्छ (साधुओंके समुदायका नाम) कहा जाताहै परंतु गृहस्थके नामका गच्छ नहीं कहा जाता. लुंका आचार्य-उपाध्याय या साधु नहींथा किंतु गृहस्थथा, जब यतिलोगोंके पासमें लुंका अशुद्ध पुस्तक लिखने लगा तब यतियोंने लुंकासे पुस्तक लिखवाने बंद करदिये, उससे लुंकाकी आजीविका (रोजी) मारी गई जिससे लुंका यतियोंके ऊपर नाराज होकर निंदा करताहुआ यतियोंकी प्रतिष्ठा व आजीविकाका उच्छेद करनेके लिये जिनप्रतिमाकी उत्थापना करनेका संवत् १५३५ में लुंकाने अपना नया मत चलाया. लुंकाको जैनशास्त्रोका तत्त्वज्ञान नहींथा उससे अनेक बातें जैनशासनकी मर्यादाके विरुद्ध चलाईहैं, वेही अंघरूढिकी शास्त्रविरुद्ध बातें आजतक इंढियोंमें चलरहीहैं उन्हींका उल्लेख
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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