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________________ .. जाहिर उद्घोषणा नं० ३. के लिये द्वेष बुद्धि से संवेगी साधुओंको पैशाब पीनेका दोष लगातेहैं यह प्रत्यक्ष झूठ बोलकर महान् पापके भागीहोते हैं और सरकारी फोजदारीके काय मुजबभी ऐसा झूठा दोष लगाकर बदनामी करके मान हानि करने वाले सब ढूंढिये दंडके भागी ठहरते हैं इसलिये किसीभी इंढियाको ऐसा झूठा आरोप लगाकर अनर्थ के भागी होना योग्य नहींहै। . [रजस्वला और सूतकका खुलासा] ७२. ढूंढिये व तेरहापंथियोंकी श्राविकाएँ रजस्वला (ऋतुप्राप्ति) के ३ दिनोमें अपने कुटुंबके लिये रसोई बनातीहैं, दलना, पीसना, वस्त्रसीना, गउदोना वगैरह बहुत प्रकारके गृह कार्य करती हैं तथा उनकी साध्वियेभी रजस्वला धर्ममें धर्मशास्त्रोंको हाथ लगाना, श्रावि. काओंका संसर्ग करना, घर २ में गौचरी को फिरना, व्रत पच्चक्खाण च मंगलिक का शास्त्र पाठ उच्चारण करना इत्यादि किसी तरहका परहेज नहीं रखती यह सब प्रत्यक्ष अनुचित व्यवहारहै। [इसलिये रजस्व. लामें पूरे ३ रोज (२४ प्रहर) तक ऊपर मुजब कार्य करने योग्य नहीं हैं]। उससे उत्तम कुलकी व उत्तम धर्मकी पुण्याई में हानि, बुद्धि-मतिकी मलीनता, भ्रष्टाचारका आरोप व लोगों में निंदा इत्यादि धार्मिक शास्त्रोंकी दृष्टिसे, व्यवहारिक दृष्टिसे, उत्तम कुलकी मर्यादाकी दृष्टिसे व शारीरिक दृष्टिसेभी अनेक तरहके नुकसान होते हैं इसलिये इस बातकी तीन रोजतक पूरी २ मर्यादा का पालन करना उचितहै। __७३. कितनेही कहते हैं कि शरीर में किसी जगह गुंबड होकर खून निकलने लगे तो उसका परहेज नहीं रखा जाता, उसी तरह स्त्रीके रजस्वला में भी गुंबडेकी तरह खून निकलताहै, उसका भी परहेज रखना नहीं चाहिये. यहभी अनसमझ की बातहै क्योंकि गुबडातो बाल वृद्ध सब मनुष्यों के होसकताहै बहुत लोगोंके कभीभी नहीं होता इस का कोई नियम नहींहै और रजस्वलातो उमर योग्य स्त्रियोंके महीने २ अवश्य होताहै तथा गुबडे वालेकी. किसी रोगी मनुष्यपर छाया पडेतो कुछभी नुकसान नहीं होता परंतु रजस्वला स्त्रीकी छाया यदि बडी-पापड आदि पर गिरजावे तो लावण लगकर खराब होजाते हैं और शीतला, मोतीझरा या आंख की बीमारी वाले रोगी पर गिरजावे तो बडी हानि होतीहै दक्षिण वगैरह बहुत जगह रजस्वलाकी छायासे आंखों चलीगई, विचारे जन्मभर दुःस्त्री हुए यह हमने भी प्रत्यक्ष देखाहै
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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