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________________ जाहिर उद्घोषणा नं० ३. ५५ कारण रोगादि तथा शरीर शक्ति हीण हो तो क्या करे, लाचारीकी बात है तो कारणे 'बृहत्कल्प' सूत्र में पंचमाध्ययनमें ऐसा कथन है ( नो कप्पई निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परिया सियाए भोयण जाय जाव तप्पपाणमेतं वा बिंदुपमाणमेतं वा भूईपमाणमेतं वा आहार माहारितए वा गणत्थ गाढेहि रोगार्थ केहिं ) इसका अर्थः- इसी पाठके शब्दोंसे जानलेना अथवा बृहत्कल्पसूत्र के टबेसे समझ लेना. इसतहर गाढे रोगादि कारण सूत्र में निषेध नहीं और कारणे साधु वृद्ध अवस्थामें एक नगर में रहे १, कारणे चौमासो उतर्या पीछे उसी नगरमें साधु रहे २, कारणे भौषध साधु लेवे ३, कारणे साधु वहती हुई साध्वीको जलमेंसे निका ले ४, कारणे साधु चौमासा में विहार करे ५, कारणे साधु नदी उतरे ६, कारणे साधु रोग तथा शक्तिहीण और संत्थारामें लोच नहीं करे ७, का रणे साधु आहार लेवें ८, कारणे साधु न लेवे ९, कारणे साधु खाडामें पड़तां वृक्षकी डाल भथवा शाख पकडके निकले १०, कारणे साधु लब्धि फोरवे ११, कारणे साधु जोतिष प्रकाशे १२, कारणे साधु बैकिय लब्धि करे १३, कारणे साधु एक मासकल्प उपर गांममें रहे १४, रोगादि कारणे साधु गृहस्थीके घर बैठे १५ इत्यादिक कारणे साधुको और भी बहुत कार्य करने पडते हैं. वैसेही शरीरकी शुचिवास्ते कारणे पाणी रात्रिको साधु-साध्वी राखे तो महाव्रतमें दोषनहीं लगताहै. पाणी नहीं राखो तो निशीथ सूत्र में दोष लिखा है इसवास्तेही श्रीप्रवचन सत्रोद्धार ग्रंथ में रात्रिको पाणी शुचिके लिये रखना लिखा है ॥ इति ॥" . ५३. और भी कनीरामजी कृत "जैनधर्म ज्ञान प्रदीप " पुस्तक भाग १, नाना दादाजी गुडने पुनामें छपवाकर प्रकट किया है उसके पृष्ठ १५२-१५३ में चौदह स्थानककी सज्झायमें नीचे 'मुजब लेख है: -- 66 'चवदे थानकरा जीवए, ज्यांमें दुःख कह्या अतीवए, तिणरोप, तिणरो विवरो हिवे सांभलोए ॥ १ ॥ बेनीत उच्चारए, पासवण एम विचारए, बे घडीऐ, बे घडी पछे जीव उपजेए ॥ २ ॥ आलस भय कर रातरोए, भेलोकर राखे मातरोए, इण वातरोए, निरणय दिवे तुमे सांभलोए ॥ ३॥ कस कस दाणा एवडाए, जंबूद्वीप जेवडाए, जेवडाए, असनीया मुवा घणाए ॥ ४ ॥ " इत्यादि ५४. ऊपर के लेखों से रात्रिमें जल रखने संबंधी विशेष खुलासा पाठकगण स्वयं कर लेगें, मेरे अधिक लिखने की जरूरत नहीं है. परंतु इतनी
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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