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________________ ॥षमो जिणाणं॥ जाहिर उद्घोषणा नंबर ३. (शरीरकी शुचिकेलिये रात्रिमें जल रखनेका निर्णय) . ४७. ढूंढिये कहते हैं कि सूत्रोंमें चार प्रकारका आहार साधुको रात्रिमें रखना मना कियाहै इसलिये हम लोग शरीरकी शुचिके लिये भी रात्रिको जल नहीं रखते, संवेगी साधु रखतेहैं सो सूत्र विरुद्धहै, यहभी ढूंढियोंका कथन अन समझका है, क्योंकि सूत्रोंमें अन्न-जल आदि चार प्रकारका आहार साधुको खाने के लिये संग्रह करके रात्रिको रखने की मनाई है परंतु विष्टा-पैशाबकी अशुचि से शरीर को शुचि करने के लिये जल रखनेकी मनाई किसी सूत्र में नहींहै परंतु खास . हूंढियोंके छपवाये “निशीथ" सत्रके चौथे उद्देशके पृष्ठ १४७-१४८ में ऐसा पाठहै;___"जे भिक्खू उच्चार पासवणं परिटुवित्ता णायमई, णायमंतं वा साइज ॥ १६३ ॥ जे भिक्ख उच्चार पासवणं परिठवित्ता तत्थेव आय मंति, आयमंतं वा साइजई ॥ १४६ ॥ जे भिक्खू उच्चार पासवर्ण परिकृवित्ता अइदूरे आयमइ, अड्दूरे आयमंतं वा साइजई ॥ १६५॥" ___अर्थ:- “जो साधु-साध्वी बडीनीत लघुनीत परिठाये बाद शुचि नहीं करे, शुची नहीं करतेको अच्छा जाने (मशुचि रहनेसे असज्झाई होवे तथा प्रवचनकी हीलना होवे आदि दोषोत्पन्न होवे) ॥१६३॥ जो साधु साध्वी जिस स्थान लघुनीत बड़ीनीत परिठाई होवे उस स्थान शुचि करे माचीर्ण लेवे, लेते को अच्छा जाने (अर्थात्-जरा ईघर उधर सरककर शुचि करनेसे समूच्छिमकी वृद्धि नहीं होवे तथा हाथ वस्त्रादिभी भरावे नहीं ) ॥ १६४ ॥ जो साधु-साध्वी बडीनीत लघुनीत परिठाकर बहुत दूर जाकर शुचि करे, शुचि करते को अच्छा जाने ॥ १६५ ॥” तो प्रायश्चित्त आये। ४८. ऊपरके सूत्रपाठमें व अर्थमें लघुनीत पैशाब और बडी नीत (ठले-जंगली जाकर उस स्थान की शुचि न करने वालेको दोष बत लायाहै तथा :सी जगह शुचि करनेले विष्टाके उपर जल गिरनेसे न सूखने पर बहुत जीवों की उत्पत्ति होनेका दोष कहाहै और उस .
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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