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________________ २४ जाहिर उद्घोषणा.. युक्ति आदि प्राचीन शास्त्रोंमें लिखाहै । तीसरी जगह लिखतेहे प्राचीन शास्त्रोंमें हमेशा बांधना नहीं लिखा किंतु भुवनभानु केवलि आदिके रासोंमें लिखाहै । चौथी जगह लिखतेहैं जैन शास्त्रोंमें नहीं लिखा परंतु अन्य दर्शनियोंके शिवपुराणादि में तो लिखाहै। पांचवीं जगह लिखतेहैं सौमिल तापसने अपने मुंहपर काष्टकी पटडी बांधीथी उसीतरह हमभी हमेशा मुंहपत्ति बांधतेहैं । छठी जगह लिखतेहैं पैरोंका भूषण पैरोंमें शोभे, वैसेही हमारे मुंहपर बांधीहुई मुंहपात शोभतीहै। सातवीं जगह लिखतेहैं किसी शास्त्रमें हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेका स्पष्ट लेख नहींहै परंतु मुंहपत्ति शब्दसे मुंहपर बांधना मानतेहैं । आठवीं जगह लिखतेहैं बोलते समय मुंहपत्तिके थूक लगताहै मुंहपत्ति गीली होतीहै परंतु समूच्छिम जीवों की उत्पत्ति हानि नहीं होती, थूक अशुचि पदार्थ नहीं है। नवमी जगह लिखते हैं नाकके श्वासोश्वाससे किसी जीवकी हानि नहीं होती इसलिये हम नाक खुली रखतेहैं । दशवीं जगह लिखतेहैं वायुकाय के जीवोंकी दया पालन करनेके लिये मुंहपत्ति बांधी रखते हैं। ग्यारहवीं जगह लिखते हैं विष्टाआदि अशुद्ध जगह की मक्खी अपने मुंहपर बैठने न पावे इस लिये मुंहपत्ति बांधी रखतेहैं । बारहवीं जगह लिखतेहैं जगतमें अच्छी २ वस्तु ढकी जाती हैं वैसेही हमारा अच्छा मुंह हमेशा ढका रहताहै। तेरहवीं जगह लिखतेहैं जैसे साध्वी साडा दोरेसे बांधा जाताहै, वैसे ही हमारी मुंहपत्ति भी दोरेसे बांधनेमें आतीहै । चौदहवीं जगह लिखतेहैं मुंहपत्ति बांधने वाले तीसरे भवमें सब कर्मों से छुटकर मोक्ष जाते हैं। पंदरहवीं जगह लिखतेहैं मूलसूत्रोंमें हमेशा मुंहपत्ति वांधना नहीं लिखा परंतु बोलते समय हमारेसे बारबार उपयोग नहीं रहता इसलिये प्रमाद के कारण बांधी रखतेहैं । इत्यादि तरह २ की पूर्वापर विरोधी मनमानी झूठी २ बातें लिखकर भोले लोगोंको बहकातेहैं और कुयुक्तियोंसे सर्वज्ञ शासनमें हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेरूप मिथ्यात्व फैलाते हैं. जिसमें कितनीक बातोंका थोडासा दिग्दर्शन मात्र समाधान इस "जाहिरउ द्घोषणा" के ऊपर के लेखों में बतलाया है और अन्य सब शंकाओंका व मुंहपत्ति संबंधी ढूंढियोंकी तरफसे आजतक छपी हुई सब पुस्तकों के लेखोंका विस्तारपूर्वक निर्णय आगमादि शास्त्र पाठों के साथ "आगमानुसार मुंहपत्तिका निर्णय" नामा ग्रंथमें लिखाहै, सबसंघको बिनादाम भेट मिलताहै, पाठक गण मंगवाकर पूरा २ पढ कर सत्य ग्रहण करें।
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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